Book Title: Jain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Author(s): Harindrabhushan Jain
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 232
________________ सप्तम अध्याय ब्राह्मण तथा श्रमण-संस्कृति संस्कृति ___संस्कृति का एकमात्र उद्देश्य मानवता की भलाई है। संसार मे भारतीय संस्कृति, योरोपीय संस्कृति आदि जिन-जिन विभिन्न संस्कृतियो के नाम सुने जाते है, उन सब मे हम उन प्रयत्नो का समावेश पाते है, जो समय-समय पर मानव-व्यक्तित्व के विकास की दिशा मे किए गए। इस दृष्टिकोण से संसार मे केवल एक ही संस्कृति है और वह है मानव-संस्कृति। यह मानव-संस्कृति भौगोलिक दृष्टिकोण से अनेक संस्कृतियो मे विभाजित हो जाती है । हमारे भारतदेश की वह आचार-विचार-परम्परा, जिसने शताब्दियों पूर्व से मानव को ऐहलौकिक सुख-शान्ति के साथ पारलौकिक-समृद्धि का भी मार्ग प्रदर्शित किया; वह "भारतीय संस्कृति" अथवा आर्य-सस्कृति" कहलाती है। ___आर्यसंस्कृति मे मानव-व्यक्तित्व के विकास की दो प्राचीन परम्पराएं मुख्य है-१ ब्राह्मण-परम्परा तथा २ श्रमण-परम्परा। इन्हे हम क्रमश. ब्राह्मण-संस्कृति तथा श्रमण-सस्कृति के नाम से सम्बोधित करेगे। ब्राह्मण-संस्कृति ब्राह्मण-सस्कृति मूल मे 'ब्रह्मन्, के आसपास प्रारंभ और विकसित हुई है। ब्रह्मन् के अनेक अर्थो मे से प्राचीन दो अर्थ इस जगह ध्यान देने योग्य है १-प्रार्थना (स्तुति) तथा २ यजयागादिकर्म। वैदिक-मंत्रो

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