Book Title: Jain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Author(s): Harindrabhushan Jain
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 177
________________ पंचम अध्याय : उपासक - जीवन [ १५६ उपासकदाग' मे एक आनन्द श्रमरणोपासक का वर्णन है; जिसने महावीर स्वामी के समक्ष उपासक के व्रत ग्रहण करते समय निम्नप्रकार से इच्छा - परिमाणव्रत स्वीकार किया था । उसने जीवनपर्यन्त स्थिर कोप- स्वर्णमुद्रा, वृद्धिप्रयुक्त स्वर्णमुद्रा, प्रविस्तरप्रयुक्तस्वर्णमुद्रा, चतुप्पदविधि, क्षेत्रवस्तुविधि, शकट-विधि, वाहनविधि, उपभोग- परिभोगविधि, जललूषण वस्त्र, दन्तवन, फल विधि, अभ्यगविधि, उवटनविधि, मज्जनविधि, भोजनविधि, पेयाहारविधि, भक्ष्यविधि, औदनविधि - सूपविधि, घृतविधि, शाकविधि, माधुरकविधि, जेमनविधि, पानीयविधि और मुखवासविधि का परिमाण किया । उसने निश्चय किया कि वह समस्त कार्यो मे लगी हुई केवल १२ करोड स्वर्णमुद्राये, १० हजार गायो के व्रज के हिसाब से ४ व्रज, ५० हजार निवर्तन ( एकड ) क्षेत्र, १ हजार शकट ( बैलगाडी), ८ वाहन, एक जल लुषरणवस्त्र ( स्नान के बाद शरीर के जलशोषण करने का वस्त्र ), १ दन्तधावन, १ मधुर आवले का फल, शतपाक तथा सहस्त्र पाक तेल, १ उवटन के लिये सुगन्धित चूर्ण, स्नान के लिए ८ उष्ट्रिकाघट जल, १ क्षौ युगलवस्त्र ( दो रेशमी वस्त्र ), शरीरलेपन के लिए अगरुकुमकुम तथा चन्दन-रूप गधद्रव्य, कमल तथा मालती पुप्प, एक कर्णाभरण तथा एक अंगूठी, अगरु तथा तुरुक की धूप, भोजन के लिए कृष्टपेय, घृतपूर, खंडखाद्यक, कलमशालि ओदन, कलायसूप ( मटर की दाल) तथा मुद्गमाषसूप ( मूंग तथा उर्द की दाल ) शरतकाल, मे सगृहीत गाय का घी, वथुआ एवं मटर की तथा सौवस्तिक शाक, पालंगा - माधुरक ( वल्लीफल का रस ) सेधाम्ल तथा दालिकाम्ल (दहीवड़ा), वर्षाजल तथा पाच सुगन्धित द्रव्यो से पूर्ण ताम्बूल के सिवाय अन्य समस्त वस्तुओ को जीवनपर्यन्त ग्रहण नही करेगा । दिग्व्रत -- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण आदि दिशाओ तथा विदिशाओ मे जीवनपर्यन्त किसी निश्चित स्थान तक आने-जाने का परिमाण कर लेना दिख़त है। मैं अमुक दिशा में जीवनपर्यन्त अमुक प्रदेश तक अमुक कोसो तक जाऊंगा; उससे आगे नही जाऊ गा; इस प्रकार का नियम दिग्वत कहलाता है । पापा १. उपासकदगाग, १, ५, पृ० ५-६ 1

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