Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha Author(s): Shreechandmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ भूमिका जैन तत्त्व विद्या के अनुसार वनस्पति का जगत सबसे विशाल है। उसके सामने जल का जगत छोटा है। पृथ्वी का जगत् उससे भी छोटा है। वनस्पति जगत् जीवों का अक्षय कोश है। जीवों के छ निकाय हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस (दसवेआलियं ४/३)। पांच निकायों में असंख्य-असंख्य जीव हैं। वनस्पति निकाय में अनन्त जीव हैं। उसकी एक राशि का नाम अव्यवहारराशि है। उसमें से जीव बाहर आते हैं और अपने विकास की यात्रा करते हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय बन जाते हैं। प्रज्ञापना, भगवती आदि आगमों में वनस्पति का सांगोपांग वर्णन उपलब्ध है। उसके सूक्ष्म जीवों का वर्णन इंद्रियगम्य और बुद्धिगम्य नहीं है। वह सूक्ष्म सत्य की शोध से जुड़ा हुआ है। प्रस्तुत कोश में उसका संग्रहण नहीं है। इसमें इंद्रियगम्य वनस्पति जगत् के कुछ पेड़-पौधों का संकलन है। जब हम प्रज्ञापना और भगवती का पाठ संशोधन कर रहे थे तब अनुभव हुआ कि वृक्ष, लता आदि की सम्यक् पहचान किए बिना सम्यक् पाठ का निर्धारण नहीं किया जा सकता। इसकी चर्चा हमने कुछ शोध टिप्पणों में की है। प्रज्ञापना के प्रथम पद में अनेक प्रकार के गुल्म बतलाए गए हैं। उनके नाम तीन गाथाओं में संकलित हैं। मनि श्री पण्य विजय जी आदि द्वारा संपादित प्रज्ञापना प. १- से वे गाथाएं उदधत की १. सेरियए णोमालिय कोरंटय बंधुजीवग मणोज्जे । पीईय पाण कणइर कुज्जय तह सिंदुवारे य ।। २. जाई मोग्गर तह जहिया य तह मल्लिया य वासंती। वत्थुल कत्थुल सेवाल गंठि मगदंतिया चेव ।। ३. चंपग जाती णवणीइया य कंदो तहा महाजाई। एवमणेगगारा हवंति गुम्मा मुणेयव्वा ।। इसमें मुख्यतः आलोच्य पाठ हैं 'गंठि' जो दूसरी गाथा के चौथे चरण में है। प्रज्ञापना की वृत्ति में इसकी कोई चर्चा नहीं है। जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति का पाठ संशोधन करते समय हमें यह ज्ञान हुआ कि प्रज्ञापना का यह 'गंठि' पाठ अशुद्ध है। यहां 'गत्थि' पाठ होना चाहिए। दूसरी गाथा के तीसरे चरण का अंतिम पद सेवाल है। 'सेवाल अगस्थि' यहां अकार का लोप होने पर 'सेवालगत्थि' पाठ शेष रह गया। जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्ति पत्र ६७ में 'सेवालगुम्मा', 'अगस्थिगुम्मा'-यह पाठ है। वृत्तिकार उपाध्याय शांतिचंद्र ने इनके संस्कृत रूप 'सेवालगुल्मा' अगस्त्यगुल्मा दिए हैं (वृत्ति पत्र ६८)। जीवाजीवाभिगम का गुल्म संबंधी मूल पाठ संक्षिप्त है। वृत्तिकार आचार्य मलयगिरी ने उनके संस्कृत नाम दिए हैं। उनमें भी सेवालगुल्मा अगस्त्यगुल्मा–ये पद उपलब्ध हैं। उन्होंने तीन संग्रहणी गाथाएं भी उदधत की है। उनमें भी सेवालगस्थि पाठ मिलता है। वे गाथाएं इस प्रकार हैं १. सेरियए नोमालिय कोरंटय बन्धजीवग मणोज्जा। बीयय बाण य कणवीर कुज्ज तह सिंदुवारे य।। २. जाई मोग्गर तह जूहिया य तह मल्लिया य वासंतीं। वत्थुल कत्थुल सेवालगत्थि मगदंतिया चेव ।। ३. चंपक जाई नवनाइया य कुंदे तहा महाकुंदे । एव मणेगागारा हवंति गुम्मा मुणेयव्वा ।। (वृत्ति पत्र २६४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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