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पहला अध्याय : जैन संघ का इतिहास बौद्धों को, तथा बृहज्जातक के टीकाकार महोत्पल आजीविक और एकदण्डी सम्प्रदाय को पर्यायवाची मानने लगे। ___ उपर्युक्त कथन से यही सिद्ध होता है कि मंखलिपुत्र गोशाल अवश्य ही एक प्रभावशाली तीर्थकर रहे होंगे। वर्षों तक उनका और महावीर का साथ रहा है, इसलिए यदि दोनों एक-दूसरे के सिद्धांतों से प्रभावित हुए हों तो आश्चर्य नहीं । बहुत संभव है कि महावीर
और गोशाल नग्नत्व, देहदमन और सामान्य आचार-विचार के पालन में एकमत रहे हों, परन्तु जब गोशाल ने नियतिवाद का प्रतिपादन किया हो तो दोनों अलग हो गये हों।'
महावीर के गणधर महावीर के उपदेशामृत से प्रभावित होकर ब्राह्मण विद्वानों ने उनका शिष्यत्व स्वीकार किया। उन दिनों पावा नगरी के महासेन वन में सोमिल नाम के एक श्रीमंत ब्राह्मण ने किसी महान् यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें मगध के सैकड़ों विद्वान् आमंत्रित थे। इनमें गोब्बर ग्रामवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति नाम के तीन भ्राता, कोल्लाक संनिवेशवासी भारद्वाजगोत्रीय व्यक्त, अग्निवैश्यायनगोत्रीय सुधर्मा, मोरिय संनिवेशवासी वाशिष्ठगोत्रीय मंडित, काश्यपगोत्रीय मौर्यपुत्र, मिथिलावासी गौतमगोत्रीय अकंपित, कोशलवासी हारितगोत्रीय अचलभ्राता, तुंगिय संनिवेशवासी कौडिन्यगोत्रीय मेतार्य, तथा राजगृहवासी कौडिन्यगोत्रीय प्रभास मुख्य थे। ये सब विद्वान् ब्राह्मण १४ विद्याओं में पारंगत थे, जो अपने शिष्यपरिवार के साथ महावीर भगवान् को शास्त्रार्थ में पराजित करने के लिए उनके समवशरण में आये थे; लेकिन अपनी-अपनी शंकाओं का समाधान पा, उल्टे वे उनके शिष्य बन गये। महावीर ने इन्हें
ऐनसाइक्लोपीडिया ऑव रिलीजन एण्ड एथिक्स (जिल्द १, पृ० २५६६८) में आजीविकाज़ नामक लेख; डाक्टर बी० एम० बरुआ, द आजीविकाज़; प्री-बुद्धिस्ट इण्डियन फिलासाफी, पृ० २६७-३१८; डाक्टर बी० सी० लाहा, हिस्टोरिकल ग्लीनिंग्ज, पृ० ३७ आदि; ए० एल० बाशम, हिस्ट्री एण्ड डाक्ट्रीन्स ऑव द श्राजीविकाज; जगदीशचन्द्र जैन, संपूर्णानन्द अभिनन्दन ग्रंथ, मंखलिपुत्र गोशाल और ज्ञातृपुत्र महावीर नामक लेख ।
१. सूत्रकृतांगटीका ३.३.८, पृ० ६०-अ। २ ० भा०