________________
पहला अध्याय : जैन संघ का इतिहास
१५.
घोषणा करना कि २४ वें तीर्थंकर गोशाल ने समस्त दुखों का नाश कर सिद्धि प्राप्त की है । "
महाबीर श्रावस्ती से मेंढियग्राम पहुँचे । उनके शरीर में तीव्र दाह होने लगी और दाह ज्वर के कारण खून के दस्त लग गये। लोग कहने लगे कि गोशाल के तपतेज का महावीर के शरीर पर असर हो रहा है, और अब वे शीघ्र ही कालधर्म को प्राप्त होंगे । यह सुनकर उनका शिष्य सिंह रुदन करने लगा। महावीर ने उसे सान्त्वना दी। महावीर ने सिंह को रेवती श्राविका के घर से 'मार्जारकृत कुक्कुटमांस" लाने को कहा, जिसका सेवन कर महावीर ने आरोग्य लाभ लिया । २ जैसे जैनधर्म ज्ञातृपुत्र महावीर के पूर्व विद्यमान था, वैसे ही आजीविक धर्म मंखलिपुत्र गोशाल के पूर्व विद्यमान था । गोशाल अष्ट महानिमित्तों का महान् पंडित था और अपने शिष्यों को उसने निमित्तशास्त्र की शिक्षा दी थी । स्वयं कालकाचार्य ने अपने शिष्यों को धर्म में स्थिर रखने के लिए आजीविक श्रमणों के पास जाकर निमित्त शास्त्र का अध्ययन किया था | 3
जैन आगमों में त्रिराशिवाद नाम का छठा निह्नव स्वीकार किया गया है । इस मत के अनुयायी त्रैराशिकों को गोशाल मत का अनुकर्ता कहा गया है; और कल्पसूत्र के अनुसार, आर्य महागिरि के शिष्य रोहगुप्त त्रैराशिक मत के प्रतिष्ठाता थे । नन्दीसूत्र से ज्ञात होता है कि दृष्टिवाद में जो ८८ सूत्रों का प्ररूपण था, उनमें से २२ सूत्र ( गोशाल मतानुसारी ) परम्परा के अनुसार प्ररूपित किये गये थे । इससे यही सिद्ध होता है कि जैन धर्म और गोशाल मत के सिद्धान्त - और आचार-विचार एक-दूसरे के बहुत निकट थे । उदाहरण के लिए,
त्रैराशिक
१. अभयदेव सूरि ने इसके निम्नलिखित श्रर्थ किये हैं: - (१) बिल्ली मार्जार) द्वारा मारे हुए कबूतर का मांस ( कुक्कुटमांस ), ( २ ) मार्जार ( वायुविशेष) के उपशमन के लिए तैयार किया हुआ बिजौरा ( कुक्कुटमांस), (३) मार्जार ( विरालिका नाम की वनस्पति ) से भावित बिजौरा ( कुक्कुटमांस ) | देखिये श्रागे, जैन साधु और मांसभक्षण नामक प्रकरण |
२. व्याख्याप्रज्ञप्ति १५ ।
३. पञ्चकल्पचूर्णी, मुनि कल्याणविजय, श्रमण भगवान् महावीर पृ० २६० से ।
४. नन्दी सूत्र ५७; समवायांग २२