Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी महाराज
बम्बई
१२ दिसम्बर, १९८५
शुभ सन्देश
आपका १६ नवम्बर, १९८४ का पत्र मिला । यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेंस का आयोजन ८, ६, एवं १० फरवरी, १९८५ को दिल्ली में किया जा रहा है । यह अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेंस जैन दर्शन के मानवतावादी सिद्धान्तों के प्रचार प्रसार के लिए प्रभावशाली व्यापक कार्यक्रम बनावे | इसके अन्तर्गत सप्त व्यसनमुक्त समाज रचना का विशिष्ट कार्यक्रम होना चाहिए । सप्तव्यसन- जुआ, मांसाहार, मदिरापान आदि से राष्ट्रीय चरित्र पतनोन्मुख हो रहा है भ्रष्टाचार का बोलबाला है, धर्मनीति शून्य विचारधारा से पापाचार पनप रहे हैं, राष्ट्रीय अखण्डता संकट में है। अनीति दुराचार, पदलोलुपता के कारण जगत प्रशान्त है । ऐसे समय में अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेंस अहिंसा संयम और तप के सिद्धान्तों का व्यापक प्रचार कर मानवीय मूल्यों की प्रतिस्थापना करे । कान्फ्रेंस की सफलता के लिए हमारी शुभकामना है ।
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आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरि
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