Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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भी मन्त्र-तन्त्रों से सम्बन्धित शास्त्र प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। जैन सम्प्रदाय का मूल मन्त्र "णमोकार मन्त्र," महामन्त्र है। इस महामन्त्र से अन्य समस्त मन्त्र प्रगट हुए हैं ऐसा आगम मत है। ऐसा कहने का प्राशय है कि मन्त्र-शास्त्र की जन्मदायी मातृकाक्षर (स्वर एवं व्यंजन) का जनक ही 'णमोकार' महामन्त्र है, जिसका वर्णन जैनागम में निम्न प्रकार उपलब्ध होता है :महामन्त्र णमोकार :
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो पाइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहरणं ॥ णमोकार महामन्त्र में मातृका ध्वनियां : एक विश्लेषण
ग+ +म्+प्रो+ + +इ+ह+अं+ +मा+ए+मं ग+ + + + + + + +मा+ण+अं ग+ -+- + -+मा+इ+ + + +मा+ण+अं ण+ +म् +ो +उ+ + + + + + +आ+ण+अं ग+ +म्+ओ+ले+यो+ए+- +म+ +-+ -+- +पा ह.+ + +अं इस विश्लेषण में से स्वर पृथक करने पर : प्र+ओ+अ+इ+_+मा+अं+ +ओ+इ+पा 1 ए 112 15 133 अं+अ+प्रो+मा+ + +मा+प्रं
ऐ124
म+ो प्रो..
+उ+
5
+मा+आ+
++ो प्रः
प्रो+ए+
+
+मा+ऊ+अं
इस प्रकार उपर्युक्त स्वरों में से रेखांकित स्वरों को मिलाने पर एवं र् और ल को "रलयोरेक्यं" मानकर पायरियारणं पद के अन्तर्गत "रि" इस प्राकृत वर्ण को 'ऋ' मान लेने पर सोलह स्वरों की सृष्टि निम्नानुसार हो जाती है। यथा"अ आ इ ई उ ऊ (र) ऋ ऋ (ल) ल ल ए ऐ मो औ अं अः" व्यंजनों को उपर्युक्त प्रकार से पृथक करने पर रण+म्+र+ह+व+ण +ण +म+स्+ + +ण ण+म्+र+य्+ण+ण+म्+व+ +क
2 य+ए++म्+ल+स्+व+व+स्+ह, +ण
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