Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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राष्ट्रीय विकास यात्रा में जैनधर्म एवं जैन पत्रकारों का योगदान
श्री जिनेन्द्र कुमार जैन
समाचार कहने या सुनने की प्रवृत्ति उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव की उत्पत्ति । प्रादिम मानव ने अपने भावों को व्यक्त करने के लिए भले ही संकेतों या वाणी का माध्यम अपनाया होगा, परन्तु उसके पीछे नेपथ्य में कोई न कोई खबर अवश्य थी। सभ्यता के विकास के साथ-साथ जैसे-जैसे समाज में अनेक परिवर्तन आये, उसी तरह संचार माध्यमों में भी परिवर्तन आये हैं ।
समाचारपत्र को समाज का दर्पण माना जाता है और पत्रकार को इतिहास का मुख्य प्रवक्ता। वर्तमान में समाचारपत्र को मात्र समाचार प्राप्ति का साधन ही नहीं माना जाता, अपितु उसे जनसाधारण का शिक्षक भी माना जाता है । जनतांत्रिक देशों में समाचारपत्र का महत्व संसद के बाद दूसरे नम्बर पर आता है । यही कारण है कि पत्रकारिता को मात्र रोटी-रोजी का साधन मानकर नहीं चला जाता, यह मानव जाति के जीवन विकास की महत्वपूर्ण आधारशिला है।
जैनधर्म विश्व का महत्वपूर्ण धर्म है। हमें इस बात का गर्व है कि हमने मानव समाज को अराजक तंत्र से निकाल कर सभ्य तंत्र दिया। अगर भगवान ऋषभदेव, भगवान महावीर, गणधर इन्द्रभूति गौतम, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य आदि महापुरुष इस धरती पर अवतरित नहीं होते तो मानव समाज अहिंसा-युग में प्रवेश ही नहीं कर पाता, मानव में मानव के रूप में जीवित रहने की माकांक्षा ही उत्पन्न नहीं होती। न जनतंत्रीय शासन प्रणाली की बात सोची जाती और न इतिहास, साहित्य व पत्रकारिता का कोई अस्तित्व ही स्थापित हो पाता ।
जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने न केवल मनुष्य की ही, अपितु समस्त प्राणीमात्र की जिन्दगी की खूबसूरती को अनुभव किया। उनका आदर्श था कि स्वतंत्रता समस्त प्राणीमात्र का जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे किसी भी स्थिति में छीना नहीं जाना चाहिए। उन्होंने सबसे पहले लोगों को 72 कलानों के साथ लिखने की कला भी बताई।
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