Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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भाषा में निबद्ध जैन छन्दःशास्त्रका एक प्रसिद्ध ग्रन्थ निरुपित किया गया है। द्वितीय निबन्ध उन्होंने डॉ० क्लासब्र नके साथ लिखा है । कन्कोन्डेन्स शोधकी एक नयी वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें पंच कार्डों पर पृथक-पृथक् आगमों तथा उनकी टीका, नियुक्ति और भाष्य आदि में उपलब्ध गाथाओंको प्रकारादि क्रमसे संकलित कर उनके प्राधार पर शोधका मार्ग प्रशस्त किया जाता है।
पश्चिम जर्मनी (बलिन) के फाइबर्ग विश्वविद्यालयके प्राच्यविद्या विभागके प्राचार्य डॉ० उलरिश श्नाइडर प्राकृत भाषाके विशिष्ट विद्वान है। वे अशोकके शिलालेखों पर भाषा-वैज्ञानिक दृष्टिसे शोध कार्य कर रहे हैं । म्यूनिखके डॉ० ए० मैटे, बॉनके डॉ० हिनबर और बलिनके डा० बोले तथा डा० ब्रन, डा० मोलर आदि जैन विद्याओंके क्षेत्रमें अब आगे आ रहे हैं। जापानमें जैनविद्याएं
जापानमें जैन दर्शनके अध्ययनका प्रचार करनेका प्रथम श्रेय डा० ई० नाकामुराको है । वे आजकल रीसो विश्वविद्यालय में सम्मानित आचार्यके पदपर प्रतिष्ठित हैं। वे जर्मनीके प्रसिद्ध विद्वान डा० हरमन याकोबीके शिष्य रहे हैं । जापानके द्वितीय जैन विद्वान डा० एच० नाकामुरा है। उन्होंने जैन और बौद्ध दर्शनका तुलनात्मक अध्ययन किया है । डा० एस० मात्सुनामीने जर्मनीके जैन विद्या मनीषी डा० शूब्रिगसे जैन आगम और अर्धमागधीका अध्ययन किया है। वे अाजकल रीसो विश्वविद्यालय में प्राचार्य हैं ।
इनके अतिरिक्त, जापानमें अाजकल कुछ तरुण पीढ़ीके लोग भी जैन दर्शनके अध्ययनअध्यापनमें दत्तचित्त हैं। श्री नागासाकी प्रोटानी विश्वविद्यालय में सहायक प्राचार्य हैं। वे नालन्दामें डा० सत्कारी मुकर्जीके शिष्य रहे है। उन्होंने प्राचार्य हेमचन्द्रकी प्रमाणमीमांसाका जापानी भाषामें अनुवाद किया है । इसी प्रकार डा० एस० पोकूण्डाने जर्मनीके डा० एल० पाल्सडोफेसे जैनागम और प्राकृतका अध्ययन किया है। इन्होंने जर्मन भाषामें प्राइन दिगम्बर डोग्मेटीक नामक पुस्तक लिखी है। श्री टाइकन हनाकी, डा० नथमल टाटियाके शिष्य है। उन्होंने अणुयोद्वाराईका अंग्रेजी अनुवाद किया है। स्व० डा० ए० एन० उपाध्येयकी शिष्या कुमारी एस० प्रोहीराने एल० डी० इंस्टीच्यूट, अहमदाबादमें जैनधर्म पर शोध की है। टोकाई विश्वविद्यालयके सहायक प्राचार्य श्री टाकाहासीने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय तथा एल० डी० इंस्टीच्यूट, अहमदाबादमें जैनधर्मका अध्यापन किया है। उनके जापानी भाषामें तीन जैन निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं ।
इस पीढ़ीके एक अग्रगण्य विद्वान डा० प्रात्सुइसी ऊनों हिरोशिमाके दर्शन-विभागके अध्यक्ष हैं। वे 1954-57 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में प्रो० टी० पार० मूर्ति तथा पं० दलसुख मालवरिणयाके शिष्य रहे हैं। उन्होंने अंग्रेजी तथा जापानी भाषामें जैनधर्म पर अनेक निबन्ध लिखे हैं जिनमें स्याद्वाद, आत्मा, कर्म, ज्ञान, प्रमाण प्रादिकी समीक्षा की गई है। प्रो० ऊनो जैन तथा न्यायवैशेषिक दर्शनों के आधार पर इण्डियन ऐपिस्टोमोलोजी पर शोध कार्य कर रहे हैं । ये स्याद्वादमंजरीका जापानी भाषामें सटिप्पण अनुवाद कर रहे हैं। वे जैनधर्म पर जापानी भाषामें एक ग्रन्थ लिखना चाहते हैं जिसकी सामग्री एकत्रित करने में वे आजकल व्यस्त हैं। रूसमें जैनविद्याएं
रूसमें भी प्राकृत तथा जैनधर्म पर शोध कार्य प्रारम्भ हुआ । विशुद्ध भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से प्राकृत पर शोध करनेवालोंमें मैडम मारग्रेट बोरोवयेवा दास्याएं इसकाया तथा मैडम तात्याना
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