Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International

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Page 307
________________ कैरेनीना ( लेनिनग्राड विश्वविद्यालय ) उल्लेखनीय हैं। इस देश में जैनधर्म पर शोध कार्य करनेवालों में मैडम नायली सेवा ( मास्को) तथा श्री प्राण्डे तेरेनत्येव (लेनिनग्राड ) प्रमुख हैं । मैडम गुसेवाने रूसी भाषा में उपलब्ध जैनधर्मकी एक मात्र पुस्तिका लिखी है तथा श्री तेरनत्येव जैनधर्मके इतिहास तथा उमास्वामिके तत्वार्थसूत्र पर शोध कार्य कर रहे हैं । मास्को के इंस्टीच्यूट व ओरियन्टल स्टडीज में भारतीय विद्याके आचार्य प्रो० आइगोर सेरेविया नकोव भी जैनधर्मके अध्ययनमें व्यस्त हैं कुछ समय पूर्वं उन्होंने रूसी भाषा में अनुदित आचार्य हरिभद्रका धूर्ताख्यान प्रकाशित किया था । इसका संशोधित संस्करण अतिशीघ्र प्रकाशित हो रहा है। इनका जैन साहित्य पर एक निबन्ध शार्ट लिटररी एन्साइकोलोपीडियामें भी प्रकाशित हुआ है। अमरीका में जैनविद्याएँ अमेरिका में केलिफोर्निया विश्वविद्यालयके साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज विभागके प्राचार्य प्रो० पद्मनाभ एस० जैनी, जैनधर्मके मर्मज्ञ विद्वान हैं। उन्होंने जैनधर्म पर बहुत शोध कार्य किया है । उनके अनेक शोधपत्र और कुछ ग्रन्थ भी इधर प्रकाशित हुये हैं । उन्होंने अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में जनसिद्धान्तोंका तुलनात्मक उपस्थापन किया है । अभी कुछ समय पूर्व ही वे भारत आये थे । वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्नातक हैं तथा वे लन्दन और मिशिगन विश्वविद्यालयों में भी कार्य कर चुके हैं । प्राप पिछले बीस वर्षोंसे विदेशों में जैनविद्यालयोंके अध्यापन एवं अध्ययनमें लगे हुये हैं । यहाँ होनोलूलू स्थित हवाई विश्वविद्यालय भी भारतीय एवं जैन विधाओंोंका एक प्रमुख केन्द्र बना हुआ है | कुछ समय पूर्व यहाँ काशीके डा० सक्सेना भारतीय दर्शन पढ़ाते थे । उनसे अनेक छात्रोंने जैन-विधानों के अध्ययन में प्रेरणा प्राप्त की । फिलाडेल्फिया विश्वविद्यालय बहुत समय से भारतीय विधानों तथा जैन विद्यानोंके अध्ययनका केन्द्र रहा है। इस समय वहाँ डा० अर्नेस्ट बेन्डर इस क्षेत्रमें काफी कार्य कर रहे हैं । वे भारत भी आ चुके हैं । यहाँके विश्व जैन मिशनसे आप अत्यन्त प्रभावित रहे हैं । आपके श्रहिंसा और जैनधर्म से सम्बन्धित अनेक लेख व कुछ पुस्तकें प्रकाशित हैं । वे प्राच्यविद्यात्रों से सम्बन्धित एक अमेरिकी शोधपत्रिकाके सम्पादक भी हैं । आजकल जैन विधानों के प्रचार-प्रसारके लिये डा० चित्रभानु तथा मुनि सुशीलकुमार जी ने भी कुछ वर्षोंसे न्यूयार्क में जैन केन्द्र स्थापित किये हैं । यहाँ जैन ध्यान विद्या, प्रचार एवं तर्कशास्त्र पर प्रयोग और शोधको प्रेरित किया जाता है । फ्रान्स में जैनविद्याएँ पेरिस विश्वविद्यालय (फ्रान्स) के जैन एवं बौद्ध दर्शन विभागकी शोध निर्देशिका डा० को कैले, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाग्रों तथा जैन दर्शनको विदुषी हैं । गत अनेक वर्षोंसे वे उक्त विषयों में शोध कार्य कर रही हैं । आपने मुनिराजसिंह रचित पाहुडदोहाका आलोचनात्मक टिप्पणियों के साथ अंग्रेजी अनुवाद किया है जो एल० डी० इंस्टीच्यूटकी शोध पत्रिका सम्बोधि ( जुलाई, 1976 ) में प्रकाशित हुआ है । उन्होंने अपने एक फ्रेन्च भाषाके निबन्धमें दोहापाहुड में Jain Education International For Private & Personal Use Only 69 www.jainelibrary.org

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