Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International

View full book text
Previous | Next

Page 299
________________ आधुनिक युग में जैनदर्शन की प्रासंगिकता डॉ० रामजी सिंह यह जैन धर्म की विडम्बना है कि यद्यपि इसने कभी विस्तारवादी धार्मिक आकांक्षा नहीं रक्खी, फिर भी यह अनेक मिथ्या कल्पनामों एवं भ्रम का शिकार हमा। सर्व प्रथम अहिंसा का अर्थ ही नहीं समझा गया। अहिंसा-धर्म का शुद्ध प्राचरण तलवार की धार पर चलने जैसा कठिन कार्य है। सर्वस्व त्याग की तैयारी के बिना इस अहिसा धर्म का सम्पूर्ण पालन भी सम्भव नहीं। अहिंसा निर्भयता की पराकाष्ठा है और निर्भयता वीरता की निशानी है। अहिंसा निष्क्रियता, निर्बलता और निरुपाय समर्पण नहीं, बल्कि प्रात्मन्याय और प्रात्मसंयम का अंतिम मापदण्ड है । क्षमा वही कर सकता है जिसके पास शक्ति है। और अहिंसा क्षमाशीलता की अंतिम सीमा है । इसलिये अहिंसा वीरों का अस्त्र है । गांधीजी ने भी कहा है कि "जहां कायरता और हिंसा के बीच चुनाव है, वहां हिंसा की सलाह दूंगा।" देश-काल की परिस्थिति का विवेकपूर्वक विचार किये बिना, मूढ़ भाव से यदि कोई समाज अहिंसा की अन्धप्रवृति करता हो वह वास्तविक अहिंसा नहीं हो सकती । यही कारण है कि एक तरफ तो जैन चींटी जैसे क्षुद्रतम जीव को बचाने के लिए अपने प्राणों का परित्याग कर सकता है, तो दूसरी ओर विशेष अवसर पर वह चक्रवर्ती सम्राटों की अक्षौहिणी से घोर संघर्ष में भी संकोच नहीं करता है। इस प्रकार जैन-अहिंसा "कुसुमादपि कोमल" एवं "वज्रादपि कठोर"है। इसलिये अहिंसा की प्रवृत्ति के साथ पराधीनता का सम्बन्ध जोड़ा भी नहीं जा सकता। अहिंसा का नाम भी जिन्होंने नहीं सुना, अहिंसा की साधना जिन्होंने नहीं की, ऐसी अनेक जातियां और राष्ट्र पराधीन हुए हैं । जैनों ने अहिंसा का ऐसा अनर्थ तो नहीं किया कि प्रजा की शौर्यवृत्ति शिथिल हो। इसके विपरीत जैन समाज और विशेषकर गुजरात का इतिहास इस बात का साक्षी है कि अपने देश का संरक्षण करने के लिए जैनधर्मी वीर योद्धाओ ने अद्भुत त्याग और रणकौशल दिखाये । प्राबू के जगतप्रसिद्ध कलाधाम आदिनाथ मन्दिर का निर्माता विमल शाह जैन ऐसा सेनापति था जिसने गुजरात की सेना को सिन्धु नदी के पार कर गजनी की सीमा को भी पादाक्रांत कर दिया था। वस्तुपाल ने गुर्जर-स्वराज्य की रक्षा के लिये कई बार युद्ध-भूमि में गुर्जर सेना का संचालन किया। भीमदेव नामक जैन सेनापति ने ही शहाबुद्दीन जैसे अजेय सुलतान को पराजित किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316