Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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इन व्यंजनों में पुनरुक्त व्यंजनों को छोड़ देने पर निम्न स्वरूप बनता है : ण+म्+ ++ह.++ + + + + + + + +ल+है+श घि 3 5 6 4 74 4662 6 7 7 1
ध्वनि सिद्धान्त के आधार पर उपर्युक्त वर्ण के वर्गाक्षर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं । जैसे-"घ=कवर्ग, 2 ज=चवर्ग, 3 ण टवर्ग, 4 घ=तवर्ग, 5 म=पवर्ग, 6 य र ल व, 7 स=श ष स ह" अस्तु इस महामन्त्र की समस्त मातृका ध्वनियां निम्न प्रकार हुई : अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ, च् छ् ज् झ् ञ्, ट् ठ ड ढ ण, त् थ् द ध् न्, प् फ् ब् म् म्, य र ल व श ष स ह ।
- उपयुक्त विश्लेषण से यह बात सिद्ध हो जाती है कि मन्त्र-शास्त्र की जननी मातकाक्षर की उत्पत्ति णमोकार मन्त्र से हई। जब णमोकार मन्त्र को अनादिसिद्ध माना जाता है, तब मातृकाक्षर का अनादिसिद्धपना स्वतः ही सिद्ध हो जाता है। भट्टारक सकलकीर्ति ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "तत्वार्थसारदीपक" में वर्णमातृका का अनादिपना तथा समस्त पागम की रचना करने वाली ऐसी वर्ण मातृका के ध्यान करने का निर्देश दिया है।
आज के वैज्ञानिक को यह पढ़कर आश्चर्य होगा कि हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वाचार्यों ने इस मातृका वणों का देवी स्वरूप, विस्तार और प्रभामण्डल समझा दिया था। विद्यानुवाद के मन्त्रव्याकरण-प्रकरण चतुर्थ में प्रत्येक वर्ण की शक्ति एवं उसके विशिष्ट लक्षण बतलाये हैं। जैसे"अ"-वृत्तासन, हाथी का वाहन, सुवर्ण के समान वणं, कुंकुम गंध, लवण स्वाद, जम्बूद्वीप में विस्तीर्ण, चार मुख, अष्ट भुजा, काली प्रांख, जटामुकुट सहित, मोतियों के प्राभूषण, अत्यन्त बलवान, गम्भीर, पुल्लिग ऐसा "अ" कार का लक्षण है। वर्ण मातृका अर्थात् वर्णमाला का प्रत्येक वर्ण मन्त्र है, क्योंकि इसके मनन से विशिष्ट शक्ति उत्पन्न होती है। जैसे-"प्र' अव्यय व्यापक, प्रात्मा के एकत्व का सूचक, शुद्ध बुद्ध, ज्ञान रूप शक्ति का द्योतक, प्रणव बीज का जनक । 'ऋ'
बीज, सिद्धि दायक, शुभकार्य सम्बन्धी बीजों का मूल, कार्य सिद्धि का सूचक । "क"शक्तिबीज, प्रभावशाली, सुखोत्पादक, सन्तान प्राप्ति की कामना का पूरक, कामबीज का जनक । "ण"-शान्ति सूचक, आकाश बीजों में प्रधान, ध्वंसक बीजों का जनक, शक्ति का स्फोटक । "व" सिद्धिदायक, आकर्षक, ह, रमौर अनुस्वार के संयोग से चमत्कारों का उत्पादक, सारस्वत बीज, भूत-पिशाच-शाकिनी-डाकिनी प्रादि की बाधा का विनाशक, रोग हर्ता, लौकिक कामनामों की पूर्ति के लिये अनुस्वार मातृका का सहयोगापेक्षी, मंगल साधक और विपत्तियों का रोधक ।
समस्त वणों की वर्णशक्ति तथा समस्त ध्वनियां मंगल मन्त्र णमोकार में सन्निविष्ट हैं। इसीलिये उसे मन्त्रराज से विभूषित किया गया है। यह मन्त्रराज समस्त संसार का सार एवं सर्व मनोरथों का दाता ही नहीं मोक्ष प्राप्ति का सेतु भी है। मतः मात्मसाधक उक्त मात्मविकासात्मक पंचपरमेष्ठी मंगल मन्त्र से अथवा बीज मन्त्र युक्त पंचपरमेष्ठी मन्त्रों और उसकी ध्वनियों के घर्षण
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