Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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के लिए निद्रा की गोद में जाना जब अखरता नहीं, तो कुछ अधिक लम्बी निद्रा प्रदान करने वाली मृत्यु से हम क्यों डरें ? जार्ज वाशिंगटन जब मृत्यु-शैया पर थे तो उन्होंने कहा-मौत प्रा गई, चलो अच्छा हुआ, विश्राम मिला । हेनरी थोरो भी मृत्यु से डरे नहीं, घबराये नहीं वरन् शान्त और गम्भीर मुद्रा में मृत्यु का स्वागत करते हुए कहा-मुझे संसार छोड़ने में कोई पश्चात्ताप नहीं। हेनरी ने अपनी मृत्यु के समय आलंकारिक भाषा में कहा-बत्तियां जला दो, मैं अंधकार में नहीं जाऊंगा । विलियम की मृत्यु के समय की अभिव्यक्ति थी-मरना कितना सुखद है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए मृत्यु के क्षणों का स्वागत किया और कहा-ईश्वर तेरी इच्छा पूर्ण हुई।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि जिसने जन्म ग्रहण किया है उसका मरण तो अनिवार्य है । आवश्यकता इस बात की है कि मृत्यु को और उसके पश्चात् के जीवन को अधिकाधिक सून्दर और सुखद बनाया जाय । जीवन को उज्ज्वल तथा पवित्र बनाये रखने के लिए समाधिमरण आवश्यक है, कहा भी है-एक भव में जो जीव समाधिमरणपूर्वक शरीर त्याग करता है वह सात-पाठ भवों से अधिक काल तक संसार में भ्रमण नही करता।
प्रिसिपल, वीर बालिका महाविद्यालय, जयपुर (राजस्थान)
मृत्यु होने से हानि' कौन है ?-याको भय मत लायो । समता से जो देह तजे तो-तो शुभ-तन तुम पायो ।
मृत्यु मित्र उपकारी तेरो-इस अवसर के माहीं । जीरण तनसे देत नयो यह, या सम साह नाहीं ॥
या सेती इस मृत्यु समय पर उत्सव अति ही कीजै । क्लेश भाव को त्याग सयाने समता भाव धरीजै ।।
यह तन जीर्ण कुटी सम प्रातम, यातें प्रीति न कीजै । नतन महल मिलै जब भाई, तब यामें क्या छीजै ।।
मृत्यु-कल्पद्रुम पाय सयाने, मांगो इच्छा जेती । समता धर कर मृत्यु करो तो, पाओ सम्पत तेती ।।
भूधरदास
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