Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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प्रब विज्ञान की सहायता से प्रत्येक ध्वनि का चित्र लेना सम्भव हो गया है। ध्वनि कम्पन के चित्रण को स्पेक्टोग्राफ की संज्ञा दी गई है। मिसवाट्स ह्य ज ने शब्द विज्ञान के चमत्कारी प्रयोग लन्दन में दिखाये थे। वह अपने द्वारा निर्मित संगीत यन्त्र "इडोफोन" को विधि पूर्वक बजाती थी, जिससे अनेक प्रकार के रूप बन जाते थे। उसने यह व्याख्या की कि वाद्य-यन्त्र को किस विधि से बजाने पर किस प्रकार के चित्र चित्रित होते हैं। इससे यह परिणाम निकला कि ध्वनियों से विविध प्राकृतियां बनती हैं । तथा यह शब्दों के सूक्ष्म कम्पनों का ही परिणाम है।
कैलीफोनिया विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री डॉ. हर्बर्ट हर ने शब्द के सूक्ष्म कम्पनों से एक ऐसा नाजक परीक्षण किया जो अन्य माधुनिक उपकरणों के लिये असम्भव: उन्होंने शब्द के सूक्ष्म कम्पनों द्वारा एक बारीक हड्डी के मैल को साफ किया । यदि यह कार्य किसी ब्लेड से किया जाता तो हड्डी निश्चित रूप से टूट जाती। परन्तु डॉ० हर्बर्ट हर ने शब्द शक्ति से यह असम्भव कार्य सम्भव कर दिखाया।
हमारे पूर्वाचार्यों ने प्रत्येक मन्त्र का गठन कुछ ऐसे चमत्कारी ढंग से किया है कि उसका सीधा प्रभाव हमारी सूक्ष्म ग्रन्थियों, षट्चक्रों और शक्ति केन्द्रों पर पड़ता है, जिससे सूक्ष्म जगत के शक्ति केन्द्र जागृत होते हैं। मन्त्रों के विधिपूर्वक गठन से वह शब्द उससे सम्बन्धित यौगिक ग्रन्थियों को गुदगुदाते हैं। उनकी सोयी हुई शक्तियों को जगाते हैं। उन ग्रन्थियों में स्फूर्ति आने से वे क्रियाशील हो जाती हैं, जिस प्रयोजन के लिए जो मन्त्र होते हैं वे उसी प्रकार की ग्रन्थियों को जगाते हैं, उन्हीं पर वे प्राघात करते हैं। इन ग्रन्थियों की क्रियाशीलता से साधक को विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं, जो दूसरों को चमत्कार दिखाई देती हैं। परन्तु वह वास्तव में शब्दों की वैज्ञानिक प्रक्रिया का ही परिणाम है।
प्रास्ट्रिया के वैज्ञानिक श्री लेबर लेजारियों ने बीजमन्त्रों का शरीर के विभिन्न अंगों पर कैसा प्रभाव पड़ता है, इसका प्रयोग करके लिखा है कि प्रणव "3" के उच्चारण से हृदय, मस्तिष्क, पेट और सभी सूक्ष्म इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता है। "हां" से फेफड़ों, गले, पेट, हृदय और मस्तिष्क को बल मिलता है । "ह्रीं" से पाचन-यन्त्रों, फेफड़ों, गले और हृदय पर प्रभाव पड़ता है। "ह." से पेट, जिगर, तिल्ली, प्रांतों और गर्भाशय को शक्ति मिलती है । "ह" से मूत्र मार्ग निरोग होता है । "ह्रौं" से उदर विकार दूर होते हैं, पक्वाशय और प्रामाशय सशक्त होते हैं, मूत्राशय शुद्ध होता है, कब्ज दूर होता है। "ह्र" से अन्न-नली को और फेफड़ों को बल मिलता है ।
रोग निवारण में, इस्पात की चादरों को काटने में, लॉण्डी तथा सिंचाई साधनों में ध्वनि शक्ति का प्रयोग विद्युत की तरह होने लगता है। जब ध्वनि-शक्ति की सहायता से उपर्युक्त लाभ प्राप्त किये जा रहे हैं, तो मन्त्र-विद्या जो ध्वनि शक्ति पर आधारित है उस पर अविश्वास कैसे किया जा सकता है।
___ शब्द की सामर्थ्य सभी भौतिक शक्तियों से बढ़कर सूक्ष्म विभेदन क्षमता वाली होती है । इस बात की निश्चित जानकारी हमारे पूर्वाचार्यों को थी। इसी कारण उन्होंने मन्त्र-विद्या का विकास किया। कालान्तर में सम्प्रदाय भेद से अनेक मन्त्रशास्त्रों की रचना हुई। भारतीय मन्त्र-शास्त्र की विशाल परम्परा रही है। इस परम्परा में अन्य सम्प्रदायों की तरह जैन सम्प्रदाय में
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