Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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जीव विज्ञान, गणित और ज्योतिष शास्त्रकी सामग्री तो आगमों में भरी पड़ी है। साथ ही उस समय का भारतीय रसायन-विज्ञान और चिकित्सा-विज्ञान कितना समृद्ध और विकसित था इसकी भी भरपूर सामग्री उपलब्ध होती है।
मनोविज्ञान और परामनोविज्ञानके बीज तो यत्र-तत्र बिखरे पड़े ही हैं पर अनेकत्र उनका अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित रूप भी देखने में आता है ।
वहां तात्त्विक विषयोंके विश्लेषणके साथ-साथ साहित्यिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य भी गम्भीरताके साथ विश्लेषित हए हैं। इस क्रमसे मनुष्यकी शाश्वत मनोभूमिकाओं, मानवीय वृत्तियों तथा वस्तु सत्योंका मार्मिक उद्घाटन हुमा है ।
वृक्ष, फल, वस्त्र आदि व्यावहारिक वस्तुओंके माध्यमसे मनुष्यकी मनः स्थितियोंका जैसा सूक्ष्म विश्लेषण प्रागमोंमें हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
स्वर-विज्ञान और स्वप्न-विज्ञानकी प्रचुर सामग्री प्राप्त होती है। जैसे आज मनोविज्ञान व्यक्तिकी प्राकृति, लिपि और बोलीके आधार पर उसके व्यक्तित्वका अङ्कन और विश्लेषण करता है, वैसे ही आगमों में व्यक्तिके रङ्गके आधार पर उसके स्वरकी पहचान बताई है। जैसे---- . श्यामा स्त्री मधुर गाती है। काली स्त्री परुष और रूखी गाती है। केशी स्त्री रूखा गीत गाती है। काणी स्त्री विलम्बित गीत गाती है। अन्धी स्त्री द्रुत गीत गाती है। पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है।
अनुयोगद्वारमें भी व्यक्तिकी ध्वनि और उसके घोषके आधार पर उसके व्यक्तित्वका बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया गया है ।
शब्द विज्ञानकी दृष्टि से ठाणं सूत्र विशेष मननीय है। जिनमें दस प्रकार के शब्द, दस प्रकारके अतीतके इन्द्रिय-विषय, दस प्रकारके वर्तमानके इन्द्रिय-विषय तथा दस प्रकारके अनागत इन्द्रिय-विषयोंका वर्णन है। ये इस बातकी ओर संकेत करते हैं कि जो भी शब्द बोला जाता है, उसकी तरंगें आकाशीय रिकार्ड में अङ्कित हो जाती है। इसके आधार पर भविष्यमें उन तरङ्गोंके माध्यमसे उच्चारित शब्दोंका सङ्कलन किया जा सकता है।
जैन-प्रागमोंका कथा-साहित्य भी समृद्ध है। ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिकदशा और विपाकश्रुत-ये अङ्ग तो विशेषतः कथाओंके माध्यमसे ही अपने कथ्यको प्रस्तुत करते है। उत्तराध्ययन, राजप्रश्नीय, भगवती आदिमें भी तत्त्व प्रतिपादनके लिए कथानोंका आलम्बन लिया गया है।
आगमों की कथाएँ वस्तुत: मनोविज्ञान और परामनोविज्ञानके खोजियों के लिए एक प्रमूल्य खजाना सिद्ध हो सकती है।
यद्यपि आगमिक कथाएँ एकसी शैली, वर्ण्य-विषयकी समानता तथा कल्पना और कलात्मकताके अभावमें पाठकको प्रथम दृष्टिमें बांध नहीं सकतीं। उनमें अति प्राकृतिक तत्त्वोंकी भी भरमार-सी प्रतीत होती है। फिर भी जब-जब तथ्योंकी गहराईमें उतरकर रहस्यकी एक-एक परतको उतारनेका प्रयास होता है तो वे गहरे अर्थों और भावोंका प्रकटन करती हैं। अन्वेषणकी
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