Book Title: Hammirayan
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 12
________________ दो शब्द वीरवर चौहान हम्मीर इतिहास प्रसिद्ध महान् व्यक्ति हुए हैं जिनके हठ के सम्बन्ध में "तिरिया तेल हमीर हठ, चढे न दूजी बार" पर्याप्त प्रख्यात कहावत है। राजस्थान के इस महान् वीर के सम्बन्ध में जैनाचार्य नयचंद्र सुरि का 'हम्मीर महाकाव्य' बहुत वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है, और उसका नवीन संस्करण पुरातत्त्वाचार्य श्रीजिन विजयजी के सम्पादित कई वर्षों से छपा पड़ा है जो अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया । नागरी प्रचारणी समा से कवि जोधराज का हम्मीर रासो व 'हमर हठ' ग्रन्थ भी बहुत वर्ष पूर्व प्रकाशित हुए थे। प्राकृत 'पैंगलम्' में हम्मीर सम्बन्धी फुटकर पद्य एवं मैथिल कवि विद्यापति की पुरुषपरीक्षा में दयावीर प्रबन्ध भी प्रकाशित है, पर हम्मीर सम्बन्धी प्राचीन राजस्थानी स्वतंत्र रचना प्राप्त न होना वर्षों से अखरता था। सन् १९५४ में श्री महावीरजी तीर्थक्षेत्र अनुसन्धान समिति, जयपुर की ओरसे राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रन्थ सूचीका द्वितीय भाग प्रकाशित हुआ तो दिगम्बर जैन बड़ा तेरापंथी मंदिर के गुटका नं० २६२में सं० १५३८ में रचित 'राय दे हमीर दे चौपई' होने की सूचना पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। उक्त गुटके को मँगवा कर उसकी प्रतिलिपि कर ली गई। प्रकाशित सूची में रचयिता के सम्बन्ध में उल्लेख नहीं था, पर प्रति मँगवाने पर कवि का नाम 'भांडउ व्यास' ज्ञात हो गया और इस रचना का परिचय मरू-मारती वर्ष ४ अंक ३ में 'महान् वीर हम्मीर दे चौहान सम्बन्धी एक प्राचीन राजस्थानी रचना' नामक लेख में दे दिया गया। तदनन्तर मुनि जिनविजयजी से इस महत्वपूर्ण अज्ञात रचना के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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