Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ knowledge. In one word, espitemology is criticism of knowledge." जर्मन दार्शनिक काण्ट ने दर्शन को ही ज्ञान की समीक्षा माना है। अब स्पष्ट है कि चार्वाक की ज्ञानमीमांसा के दो पक्ष हैं-भावात्मक और निषेधात्मक। अनमान, शब्द इत्यादि साधनों का खण्डन करना इनका निषेधात्मक पक्ष है और प्रत्यक्ष को एकमात्र प्रमाण मानना या स्वीकार करना इसका भावात्मक पक्ष है। लामा चार्वाक ज्ञान-मीमांसा का भावात्मक पक्ष चार्वाक के मुताबिक यथार्थ ज्ञानप्राप्ति का एकमात्र साधन प्रत्यक्ष है। इनके अनुसार केवल इन्द्रियों के द्वारा ही विश्वास योग्य ज्ञान अथवा असंदिग्ध ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इन्द्रिय ज्ञान ही एकमात्र यथार्थ ज्ञान है। इस मत के प्रतिपादन के लिए चार्वाक अनुमान तथा शब्द जैसे प्रमाणों का खण्डन करते हैं। जे.एन. सिन्हा के शब्दों में "The cirvikas regarded perception as the only means of valid knowledge and reject the validity of inference. They reject the authority of the Vedîs and the supermacy of the Brihma-as." पी.डी. शास्त्री के शब्दों में "Inference, testimony, analogy, presumption, etc. are all insecure and false perception by the senses is the only criterion of truth."11 अब प्रश्न उठता है कि प्रत्यक्ष क्या है? ज्ञानेन्द्रियों तथा वस्तुओं के संयोग से प्राप्त ज्ञान ही प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है। एस.सी. चटर्जी के शब्दों में "Perception is an imediate valid cognition of reality, due to some kind of sense-object contact." ज्ञानेन्द्रियां छ: हैं-आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा और मन। जब किसी वस्तु का संयोग हमारी बाह्य ज्ञानेन्द्रियों में से किसी के साथ होता है तो हमें बाह्य प्रत्यक्ष ज्ञान मिलता है और जब आन्तरिक इन्द्रिय (मन) के द्वारा सुख-दुःख आदि से सम्पर्क होता है तथा उससे जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे आन्तरिक प्रत्यक्ष कहते हैं। उदाहरणार्थ, जब आंख का संयोग आम के साथ होता है तो हमें उसके गोल एवं लाल होने का जो ज्ञान मिलता है, वही बाह्य प्रत्यक्ष है। जब मन का संयोग दुःख या सुख अथवा भाव आदि के साथ होता है तो हमें अनुकूल अथवा प्रतिकूल वेदना का जो ज्ञान मिलता है, वही आन्तरिक प्रत्यक्ष कहलाता है। प्रत्यक्ष ज्ञान ही एकमात्र यथार्थ ज्ञान है। इसलिए चार्वाक प्रत्यक्ष को ही एकमात्र ज्ञान प्राप्ति का साधन मानते हैं (प्रत्यक्षमेव प्रमाणम्)। प्रत्यक्ष द्वारा प्राप्त ज्ञान यथार्थ, असंदिग्ध एवं निश्चित होता है। यही चार्वाक की ज्ञानमीमांसा का भावात्मक पक्ष है।Page Navigation
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