Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 14
________________ 12 गुरु चिंतन गुण- पर्यायों में परिणमते हैं, अतः छहों जाति के द्रव्य समय हैं। (२२) यद्यपि छहों द्रव्य एकक्षेत्रावगाहरूप से रहते हैं, तथापि अपने स्वरूप को नहीं छोड़ते। सभी पदार्थ अपने - अपने स्वभाव में स्थित होने से ही सुन्दरता पाते हैं । अतः वास्तव में वस्तु का एकत्व ही सर्वत्र सुन्दर होता है । गाथा-४ (२३) सभी जीवों ने अपने एकत्व - स्वभाव से विरुद्ध विसंवाद उत्पन्न करने वाली काम भोग तथा बंधन की कथा तो सुनी है, परिचय की है तथा अनुभव की है; परन्तु अपने स्वभाव से अभिन्न और पर से भिन्न ऐसे एकत्व - विभक्त आत्मा की चर्चा न तो कभी सुनी है, न परिचय की है और न अनुभव की है, अतः आत्मा की चर्चा सुलभ नहीं रही है अर्थात् दुर्लभ रही है। (२४) आचार्य अमृतचन्द्र इस गाथा की टीका में लिखते हैं कि जगतजनों को अन्तरङ्ग में प्रगट प्रकाशमान आत्मा अनुभव गोचर होता है; परन्तु (क) कषायचक्र से एकाकार होने से ( ख ) स्वयं को आत्मा के स्वरूप का ज्ञान न होने से तथा (ग) आत्मा के जानकार अनुभवी ज्ञानीजनों की सेवा-संगति न करने से पर से भिन्न आत्मा का श्रवण, परिचय एवं अनुभव दुर्लभ रहा है। गाथा-५ (२५) इस गाथा में कुन्दकुन्दाचार्य देव उस एकत्व - विभक्त अर्थात् स्व से एकत्व और पर से विभक्त भिन्न आत्मा को निज वैभव से दिखाते हैं। वे कहते हैं यदि मैं शुद्धात्मा को दिखाऊँ तो तुम अपने अनुभव से प्रमाण करना, कहीं चूक जाऊँ तो छल ग्रहण नहीं करना । —

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