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गुरु चिंतन गुणविशेष से आलिंगित न होनेवाला ऐसा शुद्ध द्रव्य है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- अभेद आत्मा (सामान्य) गुणभेद (विशेष) का स्पर्श नहीं करता।
१९. टीकार्थ- लिंग अर्थात् पर्याय ऐसा जो ग्रहण अर्थात् अर्थावबोधविशेष जिसके नहीं है, सो अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा पर्याय विशेष से आलिंगित न होने वाला ऐसा शुद्ध द्रव्य है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- नित्य आत्मा अनित्य पर्याय का स्पर्श नहीं करता।
२०. टीकार्थ-लिंग अर्थात् प्रत्यभिज्ञान का कारण ऐसा जो ग्रहण अर्थात् अर्थावबोध सामान्य जिसके नहीं है, वह अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा द्रव्य से नहीं आलिंगित ऐसी शुद्ध पर्याय है – ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- शुद्ध पर्याय की अनुभूति ही आत्मा है। शुद्ध पर्याय एक स्वतंत्र अनित्य सत् अहेतुक है, वह ध्रुव सामान्य को स्पर्श नहीं करती। वेदन - जानना पर्याय में ही होता है, शक्तिरूप त्रिकाली सामान्य में नहीं। पर्याय में जब स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से आत्मा का जानना हुआ- अनुभव हुआ, तब उस शुद्ध पर्याय को (अनुभव को) आत्मा कहा।
- प्रस्तुति : ब्र. पं. हेमचन्द जैन 'हम', देवलाली