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गुरु चिंतन निर्मल भावों से भूषित हैं जिनवर विमलनाथ भगवान। राग-द्वेष मल का क्षय करके पाया सौख्य अनन्त महान ॥१३॥ गुण अनन्तपति की महिमा से मोहित है यह त्रिभुवन आज । जिन अनन्त को वन्दन करके पाऊँ शिवपुर का साम्राज्य ॥१४॥ वस्तुस्वभाव धर्मधारक हैं धर्म धुरन्धर नाथ महान। ध्रुव की धुनमय धर्म प्रगट कर वन्दित धर्मनाथ भगवान ॥१५॥ रागरूप अंगारों द्वारा दहक रहा जग का परिणाम । किंतु शांतिमय निजपरिणति से शोभित शांतिनाथ भगवान ॥१६॥ कुन्थु आदि जीवों की भी रक्षा का देते जो उपदेश। स्व-चतुष्टय में सदा सुरक्षित कुन्थुनाथ जिनवर परमेश॥१७॥ पंचेन्द्रिय विषयों से सुख की अभिलाषा है जिनकी अस्त। धन्य-धन्य अरनाथ जिनेश्वर राग-द्वेष अरि किए परास्त ॥१८॥ मोह-मल्ल पर विजय प्राप्त कर जो हैं त्रिभुवन में विख्यात । मल्लिनाथ जिन समवशरण में सदा सुशोभित हैं दिन-रात ॥१९॥ तीन कषाय चौकड़ी जयकर मुनि-सु-व्रत के धारी हैं। वन्दन जिनवर मुनिसुव्रत जो भविजन को हितकारी हैं॥२०॥ नमि जिनवर ने निज में नमकर पाया केवलज्ञान महान । मन-वच-तन से करूँ नमन सर्वज्ञ जिनेश्वर हैं गुणखान ॥२१॥ धर्मधुरा के धारक जिनवर धर्मतीर्थ रथ संचालक। नेमिनाथ जिनराज वचन नित भव्यजनों के हैं पालक॥२२॥ जो शरणागत भव्यजनों को कर लेते हैं आप समान। ऐसे अनुपम अद्वितीय पारस हैं पार्श्वनाथ भगवान ॥२३॥ महावीर सन्मति के धारक वीर और अतिवीर महान। चरण-कमल का अभिनन्दन है वन्दन वर्धमान भगवान ॥२४॥