Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 35
________________ 33 - गुरुचिंतन नास्तित्व धर्म में वस्तु की असत्ता अर्थात् पर से भिन्नता, स्वतन्त्रता और अत्यन्त अभाव की सिद्धि होती है। ६. लौकिक जीवन में भी नास्तित्व की अनुभूति के प्रसंग बनते है। किसी विशिष्ट स्थान में किसी विशिष्ट व्यक्ति का न होना बहुत कुछ कह देता है। जन सामान्य में भी अनेक चर्चायें होने लगती हैं। ७. कार्योत्पत्ति में निमित्त की उपस्थिति अनिवार्य है और कई प्रसंगों में अभावरूप निमित्त भी होते है। समुद्र की निस्तरंग अवस्था में हवा का न चलना तथा आत्मा में रागादि की अनुत्पत्ति में द्रव्यकर्म का उदय न होना आदि अभावरूप निमित्त के उदाहरण है। ८. आचार्य समन्तभद्र ने आप्तमिमांसा में अभावैकान्त का खण्डन करके अस्तित्व धर्म की और भावैकान्त का खण्डन करके नास्तित्व धर्म की महत्ता बताई है। ९. अस्तित्व-नास्तित्व धर्म की व्याख्या दो तरह से की जाती है। (अ) दोनों धर्म का क्रमशः कथन किया जा सकता है। (ब) दोनों विरोधी धर्म वस्तु में अविरोध रूप से एक साथ रहें - ऐसी योग्यता को तीसरे भंग द्वारा बताया जाता है। इसलिए वस्तु कथंचित् उभय रूप कही जाती है। १०. अस्ति-नास्ति इन दो को मिला देने से तीसरा भंग बन गया - ऐसा नहीं है। उभयरूप में रहने की योग्यता वाला तीसरा धर्म वस्तु में है जो तीसरे भंग (नय) द्वारा कहा गया है। इसी प्रकार शेष ४ भंग भी वस्तु की उस-उस प्रकार की योग्यता रूप स्वतन्त्र धर्म है। मात्र दो धर्मों का विस्तार नहीं, क्योंकि ७ प्रकार के धर्म है, इसलिए ७ प्रकार की शंकायें होती हैं और इसलिए सात भंग है। ११. यदि दोनों धर्म एक साथ रहे तो वस्तु की सत्ता सुरक्षित न रह पाएगी अतः उभय धर्म स्वीकार करना चाहिए।

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