Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 39
________________ 37 गुरुचिंतन ये निक्षेपों सम्बन्धी नय आत्मा में विद्यमान नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव धर्मों को बताते हैं। इन चारों नयों का स्वरूप निम्न बिन्दुओं के आधार से स्पष्ट समझा जा सकता है। नामनय १. आत्मा आत्मा शब्द से वाच्य होने की योग्यता रखता है। इस योग्यता को नाम धर्म कहते हैं और इसे जानने वाला नय नामनय २. यदि आत्मा में वाणी द्वारा वाच्य होने की योग्यता न होती तो उसका उपदेश देना, ग्रन्थ रचना करना आदि निरर्थक हो जाता। ३. आत्मा में वाणी का अभाव है तथापि वाणी से वाच्य होने रूप धर्म का अभाव नहीं है। भगवान आत्मा परम ब्रह्म है और उसे प्रकाशित करने वाली वाणी शब्दब्रह्म है। “शुद्ध ब्रह्म परमात्मा शब्द ब्रह्म जिनवाणी।" .. स्थापनानय १. जिस प्रकार मूर्ति में भगवान की स्थापना की जाती है उसी प्रकार किसी भी पुद्गलपिण्ड में आत्मा की स्थापना की जाती सकती है। जिस वस्तु में जिस व्यक्ति की स्थापना की जाती है उस वस्तु को देखने पर वह व्यक्ति ख्याल में आता है - इसप्रकार वह वस्तु स्थापना के द्वारा उस व्यक्ति का ज्ञान करा देती है। २. शरीर में उपचार से जीव की स्थापना करके शरीर को जीव कहा जाता है - अर्थात् जीव में ऐसी योग्यता रूप धर्म है कि उसकी स्थापना पुद्गल पिण्डों में की जा सके। ३. स्थापना तदाकार और अतदाकार के भेद से दो प्रकार की होती है। मूर्ति में भगवान की स्थापना के प्रयोग तो जगत में देखे ही जाते है, जो तदाकार स्थापना कहलाते हैं; किसी के द्वारा भेंट में प्राप्त

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