Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 48
________________ गुरुचिंतन ५. यह अनियत स्वभाव ही पाँच समवायों में स्वभाव नामक समवाय जानना चाहिए। त्रिकाली स्वभाव सामान्य कारण है और क्षणिक स्वभाव समर्थ कारण है, औपशमिकादि चार भाव कार्य हैं जिसे भवितव्य या होनहार भी कह सकते हैं। वह पर्याय त्रिकाली प्रवाह क्रम का समयवर्ती अंश होने से स्वकाल है। उन पर्यायों की उत्पत्ति में प्रयुक्त होने वाला वीर्य पुरुषार्थ है तथा निमित्त अनुकूल बाह्य पदार्थ हैं। 46 ६. पर्याय स्वभाव को अनियत कहने का आशय पर्यायों की परिवर्तनशीलता से है न कि उनके क्रम की अनिश्चितता से है। पर्यायों का क्रम अर्थात् उनके प्रगट होने का स्वकाल तो सुनिश्चित ही है। उनमें कब कैसा परिवर्तन होगा यह सब सुनिश्चित है। इस प्रकार अनियत स्वभाव और क्रमबद्धपर्याय में कोई विरोध नहीं है। - (२८-२९) स्वभावनय और अस्वभावनय 'आत्मद्रव्य स्वभावनय से जिनकी नोंक किसी के द्वारा नहीं निकाली जाती ऐसे पैने काँटे की भाँति संस्कारों को निरर्थक करनेवाला है और अस्वभावनय से, जिनकी नोंक लुहार के द्वारा संस्कार करके निकाली गई है, ऐसे पैने बाणों की भाँति संस्कारों को सार्थक करनेवाला है।" १. आत्मा के त्रिकाली स्वभाव में ऐसी योग्यता है जिसे संस्कारों अर्थात् प्रयत्नों द्वारा बदला नहीं जा सकता अर्थात् वह संस्कारों को निरर्थक करती है - इस योग्यता को स्वभाव धर्म कहते हैं और इसे जाननेवाला ज्ञान स्वभावनय कहलाता है। २. इसीप्रकार आत्मा के पर्यायस्वभाव की ऐसी योग्यता है कि उसे संस्कारित किया जा सकता है अर्थात् जो पर्याय होनेवाली है उसके अनुकूल प्रयास भी किये जाते हैं - इस योग्यता को अस्वभाव धर्म कहते हैं और इसे जाननेवाला ज्ञान अस्वभावनय कहलाता है।

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