Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 34
________________ 32 गुरुचिंतन अस्तित्वनास्तित्वनय से लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में स्थित तथा डोरी और धनुष में नहीं स्थित, संधान-अवस्था में रहे हुए और संधान-अवस्था में नहीं रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख उसी बाण की भांति क्रमशः स्व-पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा अस्तित्वनास्तित्ववाला इस सम्बन्ध में निम्न बिन्दुओं के आधार पर विचार किया जा सकता है - १. अस्तित्व और नास्तित्व को द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव के रूप में समझाया गया है। स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव में ही वस्तु की सत्ता या नास्तित्व है। २. परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव में वस्तु का अस्तित्व नहीं है अर्थात् न-अस्तित्व है। अर्थात् वस्तु स्वरूप से है पर से नहीं है। आत्मा अपने चैतन्य स्वरूप से है शरीरादि रूप नहीं है। शरीरादि पर द्रव्यों में आत्मा का नास्तित्व है अर्थात् अस्तित्व नहीं है। ३. नास्तित्व धर्म समझने में पर का सहारा लेना पड़ता है परन्तु आत्मा के नास्तित्व धर्म की सत्ता आत्मा में आत्मा से ही है शरीर में या शरीर से नहीं। आत्मा का शरीर रूप में होने की योग्यता नास्तित्व धर्म स्वरूप है। ४. प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व अपने चतुष्टय में है, पर चतुष्टय में नहीं। अतः प्रयोग करते समय सावधानी रखी जानी चाहिए कि किसकी किसमें नास्ति कही जा रही है। शरीर में आत्मा का नास्तित्व है यह आत्मा का नास्तित्व धर्म हुआ और आत्मा में शरीर का नास्तित्व होना - यह शरीर के नास्तित्व धर्म की योग्यता है। ५. अस्तित्व धर्म में वस्तु की सत्ता का बोध होता है, और

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