Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 32
________________ 30 गुरुचिंतन जाननेवाला ज्ञान सम्यक् एकान्तरूप है तथा अपेक्षा रहित जाननेवाला ज्ञान मिथ्या एकान्तरूप होता है। किसी व्यक्ति में ईमानदारी, बुद्धिमत्ता आदि विशेषतायें गुण के रूप में जानी जायेंगी, परन्तु छोटा-बड़ा, पिता-पुत्र, पतलामोटा आदि को धर्म के रूप में जाना जाएगा, क्योंकि उसमें परस्पर विरुद्ध अपेक्षाओं से एक ही साथ छोटा-बड़ा, पिता-पुत्र आदि दोनों योग्यतायें विद्यमान है। यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि कोई विशेषता शक्ति एवं धर्म दोनों रूपों में जानी जाती है। उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व शक्ति भी है। उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व स्वरूप अस्तित्व गुण भी है और सत् धर्म भी है। इस प्रकरण पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है। अब ४७ नयों के स्वरूप पर संक्षेप में विचार किया जाता है। (१-२) द्रव्यनय और पर्यायनय वह आत्मद्रव्य द्रव्यनय से, पटमात्र की भौति, चिन्मात्र है; पर्यायनय से तंतुमात्र की भाँति दर्शनज्ञानादिमात्र है। जैसे वस्त्र में अनेक ताने-बाने, रंग-रूप तथा आकारादि होते हैं, परन्तु उन्हें गौण करके मात्र वस्त्र.को जानना द्रव्य नय है तथा उसके रंग-रूपादि भेदों जानना पर्यायनय है। उसीप्रकार मात्र चित् स्वभाव को जानना द्रव्यनय है तथा ज्ञान-दर्शनादि भेदों को जानना पर्यायनय आत्मा में द्रव्य नाम का एक धर्म है जिसका स्वरूप चैतन्य मात्र है अथवा द्रव्य धर्म से आत्मा का चैतन्य स्वभाव उसके सम्पूर्ण गुण-पर्यायों में व्याप्त है और पर्याय धर्म से ज्ञान दर्शनादि भेद रूप रहने की योग्यता है।

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