Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 23
________________ गुरु चिंतन ___ 21 १३. असंकुचितविकासत्वशक्ति- क्षेत्रकालानवच्छिन्नचिद्विलासात्मिका असंकुचितविकासत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, क्षेत्र और काल से संबन्धी सीमाओं, मर्यादा एवं बाधाओं से अबाधित सदा चिद्विलास स्वरूप रहता है, उसे असंकुचितविकासत्वशक्ति कहते हैं। १४.अकार्यकारणत्वशक्ति- अन्याऽक्रियमाणाऽन्याऽकारकैकद्रव्यात्मिकाऽकार्यकारणत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अन्य द्रव्य का कार्य या कारण नहीं होता और सदाकाल एकद्रव्यात्मक बना रहता है, उसे अकार्यकारणत्वशक्ति कहते हैं। १५. परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति- परात्मनिमित्तक ज्ञेयज्ञानाकारग्रहणग्राहणस्वभावरूपा परिणम्यपरिणामकत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, परनिमित्तक ज्ञेयाकारों को ग्रहण करने के कारण परिणम्य तथा स्व निमित्तक ज्ञानाकारों द्वारा उन्हें ग्रहण कराने के स्वभावरूप होने के कारण परिणामक होता है, उसे परिणम्य परिणामकत्व शक्ति कहते हैं। १६. त्यागोपादानशून्यत्व शक्ति- अन्यूनातिरिक्तस्वरूपनियतत्वरूपा त्यागोपादानशून्यत्व शक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, न्यून-अधिकता से रहित स्वरूप में नियत रहता है, उसे त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति कहते हैं। १७. अशुरुलघुत्वशक्ति- षट्स्थानपतितवृद्धिहानिपरिणतस्वरूपप्रतिष्ठत्वकारणविशिष्ट गुणात्मिका अगुरुलघुत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, षट्गुणी वृद्धि-हानि से परिणमित होते हुए भी स्वरूप में प्रतिष्ठित होने के विशिष्ट गुणस्वरूप रहता है, छोटा-बड़ा नहीं होता है, उसे अगुरुलघुत्वशक्ति कहते हैं। १८. उत्पादव्ययधुवत्वशक्ति - क्रमाक्रमवृत्तित्वलक्षणा

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