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गुरु चिंतन
४१. कर्मशक्ति - प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयी कर्मशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, प्राप्त होने योग्य सिद्धरूप भावमयी होता है, उसे कर्मशक्ति कहते हैं।
४२. कर्तृशक्ति- भवत्तारूपसिद्धरूपभावकत्वमयी कर्तृशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, घटित होनेवाले सिद्धरूपभाव से अनुप्राणित होता है, उसको उत्पन्न करता है, उसे कर्तृशक्ति कहते हैं । ४३. करणशक्ति - भवद्भावभवनसाधकतमत्वमयी करणशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, घटित होनेवाले सिद्धरूप भाव के होने में उत्कृष्ट साधकतम होता है, उसे करणशक्ति कहते हैं।
४४. सम्प्रदानशक्ति - स्वयं दीयमानभावोपेयत्वमयी सम्प्रदान शक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, स्वयं के द्वारा स्वयं को दिये जानेवाले भाव को प्राप्त करने योग्य होता है, उसे सम्प्रदान शक्ति कहते हैं।
४५. अपादानशक्ति - उत्पादव्ययालिंगितभावापायनिरपायध्रुवत्वमयी अपादान शक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, उत्पाद-व्यय से आलिंगित भावों के नष्ट होने पर भी स्वयं ध्रुवरूप बना रहता है, उसे अपादानशक्ति कहते हैं ।
४६. अधिकरणशक्ति - भाव्यमानभावाधारत्वमयी अधिकरण शक्ति: : । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, होनेवाले भाव का आधार बनता है, उसे अधिकरणशक्ति कहते हैं।
४७. सम्बन्धशक्ति - स्वभावमात्रस्वस्वामित्वमयी संबंधशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, स्वभावरूप केवल अपने भावों का स्वामी होता है, उसे सम्बन्धशक्ति कहते हैं ।
- प्रस्तुति : डॉ. राकेश जैन शास्त्री, नागपुर