Book Title: Guru Chintan
Author(s): Mumukshuz of North America
Publisher: Mumukshuz of North America

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Page 24
________________ 22 गुरु चिंतन उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, क्रमभावी पर्यायों की अपेक्षा उत्पाद-व्ययरूप तथा अक्रमभावी गुणों की अपेक्षा ध्रुव रहता है, उसे उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति कहते हैं। १९. परिणामशक्ति - द्रव्यस्वभावभूतध्रौव्यव्ययोत्पादालिंगितसदृशविसदृशरूपैकास्तित्वमात्रमयी परिणामशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, ध्रौव्य से आलिंगित (स्पर्शित), सदृश रूपता और उत्पाद-व्यय से आलिंगित विसदृश रूपता धारण करता हुआ भी एक अस्तित्वमात्रमयी रहता है, उसे परिणामशक्ति कहते हैं। २०. अमूर्तत्वशक्ति- कर्मबंधव्यपगमव्यंजितसहजस्पर्शादिशून्यात्मप्रदेशात्मिका अमूर्तत्वशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, कर्मबन्ध के अभाव से प्रगट सहज तथा स्पर्श, रस, गंध और वर्ण से रहित आत्मप्रदेश धारण करता है, उसे अमूर्तत्वशक्ति कहते २१. अकर्तृत्वशक्ति - सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्तपरिणामकरणोपरमात्मिका अकर्तृत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, मात्र ज्ञाताभाव के अतिरिक्त समस्त कर्मकृत रागादि विकारी परिणामों का कारण नहीं होता है, उसे अकर्तृत्वशक्ति कहते २२. अभोक्तृत्वशक्ति- सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्तपरिणामानुभवोपरमात्मिका अभोक्तृत्वशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, मात्र ज्ञाताभाव के अतिरिक्त समस्त कर्मकृत रागादि विकारी परिणामों का अनुभव नहीं करता है, उसे अभोक्तृत्व शक्ति कहते हैं। २३. निष्क्रियत्वशक्ति - सकलकर्मोपरमप्रवृत्तात्मप्रदेश

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