Book Title: Ghantakarna Pratishtha Vidhi_
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Vardhamansuri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
घण्टाकर्ण प्रतिष्ठाविधिः
॥ २० ॥
www.kobatirth.org
अथ दिक्पाळपूजनम् । ततः पुष्पाञ्जलिं गृहीला वृत्तम्
इन्द्राग्ने यम निर्ऋते जलेश वायो वित्तेशेश्वरभुजगा विरंचिनाथ | संघटाधिकतम भक्तिभारभाजः स्नात्रेऽस्मिन् भुवनविभोः श्रियं कुरुध्वम् ॥ १ ॥
इति स्नपनपीठ पार्श्वस्थ कल्पित दिक्पाळपीठोपरि पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । ततस्तत्पठोपरि दिक्षु यथाक्रमं दिक्पालान स्थापयेत् । तत एकैकं दिक्पालं प्रति पूजा । तत्र प्रथममिन्द्रं प्रति जळगन्यादि गृहीला शिखरिणीवृत्तपाठःसुराधीश श्रीमन् सुदृढ तर सम्यत्तत्रवसते, शचीकान्तोपान्तस्थित विबुधकोट्या नतपद । ज्वळ वज्राघातक्षपितदनु जाधीश कटक, प्रभोः स्नात्रे विघ्नं हर हर हरे पुण्यजयिनाम् ॥ १ ॥ ॐ शक्र ! इद्द जिनस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ इदं जलं गृहाण गृहाण, गन्धं गृहाण गृहाण, धूपं गृहाण गृहाण, दीपं गृहाण गृहाण, नैवेद्यं गृहाग गृहाण, विघ्नं हर हर, दुखिं हर हर, शान्तिं कुरु कुरु, तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा । इति जल - गन्त्र - पुष्पादिभिरिन्द्रपूजनम् ॥१॥ ततोऽग्निं प्रति
बहिरन्तरतेजसा विदधत् कार्यकरण संगतिम् । जिनपूजन आशुशुक्षिणो कुरु विघ्नविघातजसा ॥ १ ॥ ( व्यपच्छंद सिकवृत्तपाठः )
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
लघुस्नात्रविधिः
॥ २० ॥

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64