Book Title: Ghantakarna Pratishtha Vidhi_
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Vardhamansuri

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra घण्टाकर्ण प्रतिष्ठाविधि ॥ १८ ॥ Da www.kobatirth.org जाते जन्मनि सार्वविपपतेरिन्द्रादयो निर्जरा नीत्वा तं करसम्पुटेन बहुभिः सार्द्धं विशिष्टोत्सवे । शृंगे मेरुमहीधरस्य मिलिते सानन्ददेवीगणे, स्नात्रारंभमुपानयन्ति बहुधा कुंभांबुगंधादिकम् ॥ १ ॥ ( शार्दूल० ) योजनमुखान् रजतनिष्कमयान् मिश्रधातुमृद्रचितान् । दधते कलशान संख्या तेषां युगषट्खदन्तिमिता ॥ २ ॥ ( आर्या ) वापीकूपदाम्बुधित गपल्वलनदी निर्झरादिभ्यः । आनीतैर्विमलजलै - स्तानधिकं पूरयन्ति च ते ॥ ३ ॥ ( आर्या० ) कस्तूरीघनसार कुंकुमसुराश्रीखंड ककोलकै - होवेरादिसुगन्धवस्तुभिरलंकुर्वन्ति तत्संवरम् । देवेन्द्रावर पारिजातबकुळ श्री पुष्पजातीजपा - मालाभिः कळशाननानि दधते संप्राप्तहारस्रजः ॥ ४ ॥ ( शार्दूल० ) निर्मिताद्भुतचतुःशृक्षशृंगोद्गतेः । ईशानाधिपतेर्निककुहरे संस्थापितं स्वामिनं, धारावारिभरे : शशांक विमलैः सिंचन्त्यनन्यातयः शेषाश्चैव सुराप्सरः समुदयाः कुर्वन्ति कौतुहलम् ॥ ५ ॥ ( शार्दूल० ) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुस्नात्रविधिः ॥ १८ ॥

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