Book Title: Ghantakarna Pratishtha Vidhi_
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Vardhamansuri

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir घण्टाकर्ण प्रतिष्ठा विधिः लघुस्नात्रविधिः ॥ २३॥ Decogepeperedeomeworracool अथ ग्रहपूजनम्- ततः पुनरपि पुष्पाञ्जलिं करे गृहीखा- आर्यावृत्तपाठ: दिनकरहिमकरभूत-शशिसुतबृहतीशकाव्यरक्तिनयाः । राहो केतो सक्षेत्रपाक जिनस्यार्चने भवत सन्निहिताः ॥१॥ इति ग्रहपीठोपरि पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । ततः पूर्वादिक्रमेण सूर्य-शुक्र-मङ्गल-राहु-शनि-चन्द्र-बुध-बृहस्पतीन् ग्रहान् स्थापयेत् । अधः केतुम् उपरि क्षेत्रपालं च स्थापयेत् । ततः सूर्य प्रति- ( वसन्ततिळकावृत्तपाठः-) विश्वप्रकाश' कृतभव्यशुभावकाश ध्वान्तप्रतानपरितापन मद्विकाश । आदित्य नित्यमिह तीर्थकराभिषेके कल्याणपल्लवनमाकलय प्रयत्नात् ॥१॥ ॐ सूर्य ! इह० शेष पूर्ववत् ॥ १॥ शुक्रं पति- ( मालिनीवृत्तपाठः-) स्फटिकधवलशुद्धध्यानविध्वस्तपाप, प्रमुदितदितिपुत्रोपास्यपादारविन्द । त्रिभुवनजनशवजन्तुजीवातुविद्य, प्रथय भगवतोऽचर्चा शुक्र हे वीतविघ्नाम् ॥१॥ ॐ शुक्र ! इह० शेषं पूर्ववत् ॥ २॥ भौम प्रति- (आर्यापाठः-) प्रबळबलमितितकुशल-लालनाललितकविघ्नहते । भौम जिनस्नपनेऽस्मिन् विघटय विघ्नागमं सर्वम् ॥१॥ PorderarmerceDeshpeecRepera ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64