Book Title: Ghantakarna Pratishtha Vidhi_
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Vardhamansuri

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra घण्टाकर्ण प्रतिष्ठाविधिः ॥ २१ ॥ ॐ अग्ने इह जिनस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ ( वसन्ततिलकापाठ: - ) www.kobatirth.org आगच्छ इदं जलं इत्यादि पूर्ववत् ॥ २ ॥ यमं प्रति दीप्तजनप्रभ तनोतु च संनिकर्ष, वाहारिवाहान समुद्धर दंडपाणे | सर्वत्र तुल्यकरणीय करस्थधर्म, कीनाश नाशय विपद्विशरं क्षणेऽत्र ॥ १ ॥ ॐ यम ! इद्द० शेषं पूर्ववत् ॥ ३ ॥ निर्ऋतिं प्रति - ( आर्यापाठः ) राक्षसगणपरिवेष्टित चेष्टितमात्रप्रकाश इतशत्रो । स्नात्रोत्सवेऽत्र निर्ऋते नाशय सर्वाणि दुःखानि ॥ १ ॥ ॐ निर्ऋते ! इह० शेषं पूर्ववत् ॥ ४ ॥ वरुणं प्रति - ( सग्धरावृत्तपाठः — ) कल्लोळानीतोळाधिक किरणगणस्फीतरत्नपपञ्च-प्रोद्भूतौर्वाग्निशोभं वरमकरमहापृष्ठदेशोक्तमानम् । चंचच्चीरल्लिशं गिप्रभृतिझणगणैरचितं वारुणं नो, वर्ष्मच्छिन्द्यादपायं त्रिजगदधिपतेः स्नात्रसत्रे पवित्रे ॥ १ ॥ ॐ वरुण ! इह० शेषं पूर्ववत् ॥ ५ ॥ ततो वायुं प्रति - ( मालिनीवृत्तपाठ: - ) ध्वजपटकृत कीर्तिस्फूर्तिदीप्यद्विमान - प्रसृमरबहुवे गत्यक्तसर्वोपमान । इह जिनपतिपूजासन्निधौ मातरिश्वन्, नय नय समुदायं मध्याह्यातपानाम् ॥ १ ॥ ॐ वायो ! इह० शेषं पूर्ववत् ॥ ६ ॥ ततः कुबेरं प्रति - (वसन्ततिलकापाठ: - ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only लघुस्नात्रविधिः ॥ २१ ॥

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