Book Title: Ghantakarna Pratishtha Vidhi_
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Vardhamansuri

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घण्टाकर्ण प्रतिष्ठाविधिः लघुस्नात्रविधिः ॥ २५॥ DecOCRACleriencorapeareezer सुरपतिहृदयावतीर्णमंत्र, प्रचुरकलाविकळपकाश भास्वन् । जिनपतिचरणाभिषेककाले, कुरु बृहतीवर विघ्नपणाशम् ॥ १॥ ॐ गुरो ! इह० शेषं पूर्ववत् ॥ ८॥ केतुं प्रति- (द्रुतविलम्बितवृत्तपाठः-) निजनिजोदययोगजगत्त्रयी, कुशळविस्तरकारणतां गतः ।। भवतु केतुरनश्वरसम्पदा, सततहेतुरवारितविक्रम ॥१॥ *केतो ! इह शेषं पूर्ववत् ॥ ९॥ क्षेत्रपालं पति- ( आर्था) कृष्णसितकपिलवर्ण-प्रकीर्णकोपासिंतांघ्रियुग्म सदा । श्रीक्षेत्रपाल पालय, भविकजनं विघ्नहरणेन ॥१॥ ॐ क्षेत्रपाल ! इह शेषं पूर्ववत् ॥१०॥ इति ग्रह-क्षेत्रपालपूजा ॥ (विद्यादेवता-शासनयक्ष-यक्षिणी-सुरलोकाधिपूजनं बृहत्स्नात्रविधौ कथयिष्यते प्रतिष्ठाशांतिकपौष्टिकोपयोगित्वात् ) । ततो जिनपतिमाया गन्धपुष्पाक्षतधूपदीपपूजा पूर्वमंत्रैरेव । ततः करे वस्त्रं गृहोला- ( वसन्ततिलकावृत्तपाठः-) त्यक्ताखिलार्थवनितासुतभूरिराज्यो, नि:संगतामुपगतो जगतामधीशः । भिक्षुर्भवनपि स वर्मणि देवदूष्य-मेकं दधाति वचनेन सुरासुराणाम् ॥ १॥ Deroeccagecorpiecemezoerca@expercom ॥ २५॥ For Private and Personal Use Only

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