Book Title: Essence Of Jaina Scriptures
Author(s): Jagdish Prasad Jain
Publisher: Kaveri Books
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THE ESSENCE OF JAINA SCRIPTURES
सुसं. जिरणोवविटुं पोग्गलदव्यप्पाहि बयणेहि । तं जागणा हि रणार्ग सुत्तस्स य जाणणा भणिया ॥३४॥ जो जाणदि सो गाणं ण हवदि गाणेण जाणगो प्रादा। पाएं परिणदि सयं अट्ठा गाणट्ठिया सव्वे ॥३५॥ तम्हा गाणं जीवो ऐयं बव्वं तिहा समक्खादं । दध्वं ति पुणो मादा परं च परिणामसंबद्धं ॥३६॥ तत्कालिगेव सब्वे सदसन्मूदा हि पज्जया तासि । वट्ट ते ते गाणे विसेसदो दग्वजादीणं ॥३७॥ जे ऐव हि संजाया जे खलु भट्ठा भवीय पज्जाया। ते होंति प्रसन्मूदा पज्जाया गाणपच्चक्खा ॥३॥ जदि पच्चक्खमजादं पज्जायं पलयिदं च गाणस्स । ण हवदि वा तं गाणं दिव्वं ति हि के परवेति ॥३६॥ प्रत्थं प्रक्चरिणवदिवं ईहापुव्वेहि जे विजाणंति । तेसिं परोक्खमूदं पादुमसक्कं ति पम्परां ॥४०॥ अपदेसं सपदेस मुत्तममुत्तं च पज्जयमजावं । पलयं गदं च जाणदित गाणदिदियं भरिणयं ॥४१॥ परिणमदि गेयमढेरणादा जदि गेव खाइर्ग तस्स । णागं ति तं जिगिंदा खवयंतं कम्ममेवुत्ता ॥४२॥ उदयगदा कम्मंसा जिरणवरवसहेहि रिणयविणा भणिया। तेसु विमूढो रत्तो दृट्ठो वाबंधमणुभवदि ॥४३॥ ठागगिसेजविहारा धम्मुवदेसो य णियदयो तेसि । परहंतागं काले मायाचारो ब्व इत्थीणं ॥४४॥ पुण्यफला प्ररहता तेसि किरिया पुणो हि प्रोदइया। मोहदिहिं विरहिवा तम्हा सा खाइग ति मदा ॥४५॥
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