Book Title: Essence Of Jaina Scriptures
Author(s): Jagdish Prasad Jain
Publisher: Kaveri Books
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THE ESSENCE OF JAINA SCRIPTURES
तम्हा दुपस्थि कोई सहामसमष्ट्रिोति संसारे । संसारो पुरण किरिया संसरमासस्स बम्बस्स ।।१२०॥ पावा कम्मलिमसो परिणाम सहवि कम्मसंजुत्तं । तत्तो सिलिसदि कम्मं सम्हा कम्मं तु परिणामो ॥१२।। परिलामो सयमा सा पुष किरिय ति होदि जीवमया । किरिया कम्म तिमदा तम्हा कम्मरस स दुकत्ता ॥१२२॥ परिणमदि चेस्साए मावा पुरण बेदरणा तिधाभिमदा । सा पुरा जागे कम्मे फलम्मि वा कम्मखो भरिपदा ॥१२३।। खाएं प्रदवियप्पो कम्मं जोवेरा जं समारद्ध। तमणेगविषं भणिवं फलं ति सोक्खं , बुक्खं वा ॥१२४॥ अप्पा परिखामप्पा परिणामो मागकम्मफलभावी। तम्हा गार्ग कम्म कलं च पादा मुवयो ।।१२।। कत्ता करण कम्मं फलं प्रपति णिज्यिको समगो । परिणदि गेब मज्ज गदि अप्पाणं लहदि मुझ ॥१२६॥ व जीवमजोबं जोबो पुस चेरणोवनोगमायो । पोग्गलदमयमुहं प्रवेद हदि य प्रजोवं ।।१२७॥ पोग्गसजीवरिणबद्धो धमाधम्मस्थिकायकालढो। वट्टवि भागासे जो लोगो सो समकाले दु॥१२८।। उप्पावदिदिभमा पोग्गलजीवप्पगस्स लोगस्स । परिणामा जायसे संघाबादो व मेवादो ॥१२६।। लिगेहि जेहि वर्ष जीबमजीवं च हदि विष्णादं । तेऽतम्भावविसिट्ठा मुत्तामुत्ता मुसा ऐया ॥१३०॥ मुसा इंदियगेम्झा पोग्गलम्बप्पणा मगेगविधा। एन्वाणममुत्ताणं गुणा प्रमुत्ता मणेदना ।।१३१॥
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