Book Title: Essence Of Jaina Scriptures
Author(s): Jagdish Prasad Jain
Publisher: Kaveri Books

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Page 460
________________ 434 THE ESSENCE OF JAINA SCRIPTURES मोगाउगाखिचिदो पुग्गलकाहिं सम्बदो लोगो । सुहुमेहि पावरेहि य अप्पासोग्गेहि जोग्गेहि ॥१६॥ कम्मत्तगपायोग्गा संघा बोवस्स परिणई पप्पा । गन्यति सम्मभावं ण हि ते जोवेरा परिणमिया ॥१६६।। ते ते कम्मतगा पोग्गलकाया पुसो वि जीवस्त । संजायते हा देहतरसंकमं पप्पा ॥१७॥ पोरालियो य देहो बेडम्पिमो य तेजसियो । प्राहारय कम्माप्रो पोग्गलबप्पमासम्बे ॥११॥ परसमस्वमगंधं अबतं बरखागुनमसई। भास पलिपगहणं जीवसिदिसंठालं ॥१२॥ मुत्तो सवारिमुखो बम्मादि फाहिमपनमहि । तभिवरीदो अप्पा बझदि किष पोग्गलं कम्मं ॥१३॥ हवाविरहि रहिवो पेयदि बाणावि रुखमादीणि । सपालि गुरणे यजमा तहबंधो तेष बाबीहि ॥१४॥ उपयोगमप्रो जीवो मुग्भवि रवि वा परस्सेदि । पपा विविध विसये जो हि पुषोतेहि सो बन्धो ॥१७॥ भाग्रेस ओख जीवोपेन्द्रवि जाणादि प्राग बिसये। रम्मदि तेणेव पुरणो बन्झदि कम्मति उपदेशो ॥१७॥ फासेहि पोग्यलाएं बंधो जीवस्य रागमारीहिं । अण्णोणमवगाहो पुग्गलजीवप्पगो भरिणो ॥१७॥ सपदेशो सो मापा तेस पदेसेलु पोग्गता काया। पविसंति जहाजोगं चिट्ठति हि जति सम्झति ।।१७।। रत्तो पनि कम्म मुच्चादि कम्मेहि रागरहिदप्पा । एसो बंधसमासो जोबासं जाण सिन्जयहो ॥१७॥

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