Book Title: Essence Of Jaina Scriptures
Author(s): Jagdish Prasad Jain
Publisher: Kaveri Books

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Page 463
________________ PRAKRIT TEXT 437 चरणानुयोगसूचक चूलिका एवं पमिय सिद्ध निणपरसहे पुरखो पुगो समथे। पतिवज्जबु सामरणं अदि इच्छदि दुक्सपरिमोक्वं ।।२०१॥ प्रापिच्छ संवर्ग विमोचिदो गुरुकलतपुत्तेहि । प्रासिम्ब गाणबंसलवरिसतबबीरियापारं ॥२०२।। समसं गणि मुखद कुलरुषवयोविसिमिद्वारं । समहि तं पि पलदो परिच्छ मवेवि प्रणुगहिदो ॥२०॥ गाहं होमि परेसिभ मे परे सस्थि मज्झमिह किचि । इदि पिन्छियो जिदिदो बादो अपबादरुवपरो ।।२०४।। अपनादस्वजा उत्पाडिसकेसमंसुगं सर्व। रहिवं हिसावीरो अप्परिकम्मं हवि लिंग ॥२०॥ मुच्छारंभबिलुतं तं उवजोगजोमसुद्धीहि । लिग्गं रग परावेवं प्रणम्भवकारणं जेन्हं ॥२०६।। मादाय तं पि लिगं गुरुणा परमेण तं बमंसित्ता। सोच्या सव किरियं उदिदों होवि सो समरखो ॥२०७॥ बदसनिदिवियरोधो सोचावस्सयमचेलमन्हाएं। सिदिसयरामवंतवमं सिविभोयणमेगभत्तं च ।।२०।। एदे खलु मूलगुणा समसाणं बिगबरेहि पन्यता। तेस पमत्तो समगो बोटावगो होरि ॥२०॥ लिगम्हणे तेसिं गुरु ति पबजज्बदायगो होदि । खेदेसूवट्ठवगा सेसा गिजायगा समएा ।।२१०॥ पयदम्हि समारवं छेदो समयस्स कायोटुम्हि । गापि जवि तस्स पुणो पालोयगपुब्विया किरिया ॥२१॥

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