Book Title: Essence Of Jaina Scriptures
Author(s): Jagdish Prasad Jain
Publisher: Kaveri Books

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Page 467
________________ 441 PRAKRIT TEXT बातो वा बुडो वा समभिहलोषापुरषो गिलागोवा। परियं चर सबोग्ग मूलन्देको बास हवति ॥२३०॥ माहारे ब बिहारे देसं कालं समं समं उषि । बारिणता हे समसो बट्टदि अदि अप्पलेबी सो ॥२३॥ एपग्गगयो समगो एयग्गं गिन्छिवस्स प्रत्येमु । पिच्छितो मागमवो पागमचेटा तो जेद्वा ॥२३२॥ भाममहोपो समतो सेवामार्ग परं बियाणादि । पविजाणंतो प्रत्ये सवेदिकम्माणि किष भिक्खू ॥२३॥ मागमवासू साहू इंदियचणि सबभूवाणि । देवा य. प्रोहिया सिता पुरण सव्वदो बाबू ॥२३४॥ सम्बे भागमसिहा प्रत्वा गुरुपरमपहिं विहि । भाति मागमेख हि पेन्धित्ता से विते समगा ।।२।। प्रागमपुब्या विट्ठी व भवति बस्सेह संगमो तस्स । पत्थीदि भगति सुसं पसंनदो होदि किष समरणो ॥२६॥ पहिपागमेण सिम्मानिसहहएं अविविवि प्रत्येसु। सहहमाणो प्रत्ये प्रसंगदो बा - बिम्बारि ॥२३॥ मसापी कम्मं मवेवि भवसयसहस्सकोडीहि । तं पाणी तिहि गुत्तो बवि नस्सासमेसेस ॥२३॥ परमाणुपमारणं वा मुच्या हारिएसु नस्स पुगो । विम्वविमति सो सिरिस सहविसबानमधरो वि॥२२६/१॥ जागो य प्रारंभो विसविरागो सामो कसाया। सो संबमोरि भरिगो पबचाए बिसेसेण ॥२३६२।। पंचसमिसे तिगुत्तो पंवेदियसंबुडो विवकमायो । बसणणाएसमग्मो समसो सो संजबो मरिणदो ॥२४॥ समसत बंधुवागो समनुहदुस्लो पसंससिक्समो । समलोदकंचरणो पुष बीविषमरणे समो समणो ॥२४१।।

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