Book Title: Essence Of Jaina Scriptures
Author(s): Jagdish Prasad Jain
Publisher: Kaveri Books
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THE ESSENCE OF JAINA SCRIPTURES
चता पावारंभं समुट्ठियो वा सुहम्मि चरियन्हि । रंग जहदि आदि मोहावी व लहदि सो अपगं सुद्ध ॥७६ / १ ॥ तव संजमप्यसिद्धो सुद्रो सम्गापवग्ग मग्ग करो । अमरासुरिवमहिशे देवो सो लोयसिहरत्यो ॥७६ / २ || तं देवदेवदेवं जदिवरवसहं गुरु तिलोयस्स | परणमंति जे मणस्सा से सोक्खं प्रक्वं प्रक्यं जंति ॥७२ / ३ ॥ जो जादि अरहंतं बध्यत्तगुरु सपज्जय तेहि । सो जारादि प्रप्पा मोहो खलु जादि तस्स लयं ॥ ६० ॥ जीवो बचगदमोहो उवलो तरचमप्पस्यो सम्मं । जहदि जबि रामदोले सो अप्पाणं लहवि सुद्धं ॥ ६१॥ सब्बे वि य अरहंता तेरण विधाणेण सविदकम्मंसा । fever auladi fखावा ते रामो तेसि ||६२/१॥
सरगसुद्धा पुरिसा लालवहारणा सम्मग्वरिवत्या । पूजासककाररिहा दारणस्य य हि ते रामो तेसि ||८२ / २|| roatfare मूढो भावो जीवस्य हवदि मोहो ति । सुम्भवि तेजुच्छष्णो पप्पा रागं व बोसं वा ॥८३॥ मोहेस व रामेण व बोसेल व परिणदत्त जीवस्य । जापदि विविहो बंधो तम्हा ते संखबइदम्बा ||८४|| अट्ट प्रजयागहणं करुणाभावो य तिरिएमएसु । बिसएसु य प्यसंगो मोहस्सेदारिण लिंगा ॥६५॥ frer सत्थादो श्रट्ट पक्चक्खादीहि बुझदो लिपमा । खोयदि मोहोवचयो तम्हा सत्यं समभिवव्वं ॥ ८६ ॥ दण्ारिण गुरुणा तेसि पज्जाया घट्टसण्या भशिया । तेसु गुखपज्जयारां श्रप्पा जब ति उवदेशो ॥ ८७॥
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