Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

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Page 11
________________ एम पर्यायार्थिक छ नयोमां पण । आम बारमो अर पूर्ण थया पछी तेनु अन्तर (खण्डन ) गमे ते नय करी शके छे । ते नयनुं पण अन्तर तेना पछीनो नय, एवी रीते खण्डन मण्डन चाल्या करे छे । तेनो अन्त आवतो नथी माटेज तेने चक्र कहेवामां आव्युं छे । ... स्याद्वादरूपी तुम्बः-आ बधा नयोनी तमाम युक्तिओने अखण्डित जाळवी राखनार स्याद्वादरूपी तुम्बनी रचना करवामां आवी छे, जे बारे बार नयोनो ( अरोनो) आधार छे । ए तुम्ब सिवाय नयो टकी शकता नथी एम सुस्पष्ट अनेको हेतुओ द्वारा निरूपण करवामां आव्यु छ । आ तुम्बस्वरूप स्याद्वाद विना कोई नय विजयी बनी शकतो नथी । सुन्दोपसुन्दन्याये परस्पर विरोधथी प्रहत थई जाय छे । आ विरोधने हटावीने स्याद्वाद बधा नयनुं रक्षण करे छे एटले आ स्याद्वाद लोकने आधीन बनाववामा समर्थ बधा नयवादोनो परमेश्वेर छे केम के परस्पर नयोनो एकान्तरूप विरोध दूर करीने एकीकरण करे छ । आ एकीकरण स्याद्वादज करी शके छे । आ स्याद्वादने अनुसरीने नयो वस्तुनुं निरूपण करे तो ज ते प्रमाणमां स्थान पामी शके छे । खतंत्रपणे निरूपण करे त्यारे एकान्त पकडवाथी निष्फल जाय छे । आम प्रन्थकारे नयोनुं निरूपण करतां स्थाने स्थाने दर्शाव्यु छ । प्रस्तुत ग्रन्थy नामः-मूळकारे तथा टीकाकारे ठाम ठाम नयचक्र नामनो ज विशेष उपयोग कयों छ । द्वादशारनयचक्रनामनो उल्लेख क्वचित ज करेलो जोवामां आवे छे । छतां सम्भव छे के 'द्वादशारनयचक्र' नाम ज ग्रन्थकारने अभिप्रेत हशे अने उच्चारणनी सुलभता खातर नयचक्र नाम लखता रह्या होय ! सप्तशतारनयचक्राध्ययनमाथी उद्धृत आ नयचक्रने तेनाथी जुदुं पाडवा माटे द्वादशारनयचक्र आq नामकरण करवामां आवे ए सुसम्भवित छे । मलधारी हेमचन्द्राचार्यमहाराजे पण अनुयोगद्वारनी टीकामां 'इदानीमपि द्वादशारं नयचक्रमस्ति' आ प्रमाणे द्वादशारनयचक्रनुं ज नाम लीधुं छे । आ समय सुधी तो आ ग्रन्थ विद्यमान हशे! द्वादशारनयचक्रनामनो ज व्यवहार हशे! खुद ग्रन्थकार पण आ ग्रन्थने द्वादशारनयचक्र ज कहे छ । टीकाकार पण ग्रन्थाते 'द्वादशारनयचक्रं सिद्धप्रतिष्ठितं' आकुंज नाम लखे छे । गुणरत्नसूरिए षड्दर्शनसमुच्चयनी वृत्तिमां तथा जिनप्रभसूरिए जिनागमस्तवमां नयचक्रवाल नाम लख्यु छे, पण ऊपरना प्रमाणो जोतां ते बराबर लागतुं नथी । आ नयचक्रशास्त्रविवरणनी व्याख्यानी एकज पक्षमा प्रतिलिपि करनार, जे प्रतिलिपि (नकल ) आजे प्राप्त थती लगभग सर्व प्रतियोनो आधार छे, एवा महान् उपकारी तार्किकचूडामणि परमपूज्य उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराज पण द्वादशारनयचक्र नामनो ज उल्लेख करे छ। नयोनी सत्यासत्यता:-केमके आ नयचक्रनो प्रधानविषय आ ज छे 'विधिनियमभङ्गवृत्तिव्यतिरिक्तत्वादनर्थकवचोवत् । जैनादन्यच्छासनमनृतं भवतीति वैधर्म्यम् ॥ आ सूत्ररूप कारिकामां आ ज वस्तु बताववामां आवी छ । विधि अने नियमना आधारे बार भङ्ग थाय छे । ते बार भङ्ग बार नय १. तुम्बज मुख्य आधार छे. पट्टानी आवश्यकता रहेती नथी. आज पण पट्टा वगर चक्र जोवामां आवे छे. ग्रन्थकारना समयमा आम ज हशे! नहीं तो ग्रन्थकारे पोते ज पट्टाना स्थाननी कल्पना करी होत ! २. नयचक्र पृ. ९४ । ३. १, विधिः २, विधिविधिः ३, विध्युभयं ४, विधिनियमः ५, उभयं ६, उभयविधिः ७, उभयोभयं ८, उभयनियमः ९, नियमः १०, नियमविधिः ११, नियमोभयं १२, नियमनियमः इति। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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