Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

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Page 13
________________ तेमना स्तावको:-आ शासनप्रभावक ज्ञानक्रियायोगी महापुरुषना नामनो उल्लेख सर्वप्रथम हरिभद्रसूरि म. नी अनेकान्तजयपताकामां तथा योगबिन्दुनीखोपज्ञटीकामां देखाय छे । शान्तिसूरिमहाराजे तो न्यायावतारवार्तिकनी वृत्तिमा मल्लवादिसूरिमहाराजनी एक काव्यमां पण अद्भुतस्तुति करी छे । अने' वादिवेताळशान्तिसूरिकृत उत्तराध्ययनसूत्रनी प्राकृत टीकामां तो नयचक्रना नामनो उल्लेख अने नयचक्रनी युक्तिपण मळे छे. भद्रेश्वरसू. म. जे प्राकृत कथावलीमां नयचक्र अने मल्लादिनो योग्य परिचय आप्यो छे । मलधारी हेमचन्द्राचार्यकृत विशेषावश्यकभाष्यनी टीकामां नयचक्रनो निर्देश छे । कलिकालसर्वज्ञे तो 'अनुमल्लादिनं तार्किकाः' कहीने सिद्धहैमव्याकरणमा एमनी तार्किकतानी सर्वोत्कृष्टता गाई छ । ते पछी सहस्रावधानी मुनिसुन्दरसूरि वगेरे अनेकानेक आचार्य भगवंतोए नयचक्र तथा मल्लवादि सूरिने स्तव्या छे । छेवटना न्यायाचार्य न्यायविशारद यशोविजयउपाध्यायजीए आठ प्रभावकनी सज्झायमा मल्लवादिसूरिने वादिप्रभावक तरीके स्तव्या छे ने द्रव्यगुणपर्यायना रासमां नयचक्रना एक अरमां बारे अर उतारी शकाय छे, आम ग्रन्थ अने ग्रन्थकारने अनेकानेक जैनाचार्योंए स्तव्या छ । ___आ वादिप्रभावकसूरीश्वरनी वादशक्ति-तर्कशक्ति खरेखर तेमना काळमां परवादिरूपी तारलाओ माटे मध्याकाळना तपता सूर्य जेवी हती, एमनी रचना पण एटली अद्भुत छे के तेमना काळना अने ते पूर्वमा रचायेला ग्रन्थो अने ग्रन्थकारोना मर्मने लई एमना ज वचनोनो आधार लईने तेमना वादोने के सिद्धान्तो ने अलौकिक शैलीए अने कोई पण कठोर वचननो प्रयोग कर्या वगर अवास्तविकतानी कोटिए पहोंचाडवानो प्रयत्न कर्यो छे । एमणे लीघेला केटलाक ग्रन्थो एवा छे के जे हालमां उपलब्ध थता नथी अने वर्तमानमा उपलब्ध थता ग्रन्थोमां जोवा न मळे एवा लांबा लांबा पूर्वपक्षो अने लांबी लांबी चर्चाओ के जे जटिल होवा छतां सरस अने सरलरीतिए रजु करी दुर्भेद्य युक्तिओयी निराकरण करवामां जेओ सिद्धहस्त छ । जे एमना ग्रंथना वांचनार अने भणनारने तरत ज ग्राह्य थई प्रकाण्ड वादी बनायी दे छे, एवो आ विशाळ अने गम्भीर ग्रन्थरत्न जैन जगतमां अपूर्व छे । कारण के आ आचार्यना पूर्ववर्ती आचार्योए अनेकान्तसिद्धान्तनी स्थापना स्पष्टरूपे करी तो छे, पण नयात्मक पूर्वपक्षिओना वादनुं मात्र निराकरण करे छे जेथी स्पष्टपणे पूर्वपक्षवादिओनो मत समजी शकातो नथी। आ आचार्य भगवाने पूर्वपक्षिओना मतनी स्पष्टपणे स्थापना करीने निराकरण कयु छ । माटे आ ग्रन्थ अपूर्व छ । आचार्य सिद्धसेनदिवाकर महाराज । ___ आ नयचक्रमा मूळकारे पू. सिद्धसेनदिवाकर सूरि म. नी केटलीक कारिकाओ तथा केटलाक वाक्यो उद्धृत कयाँ छ । आ दिवाकरसूरिजीमहाराज विद्याधरवंशीय आचार्य स्कन्दिलसूरिजीना शिष्य वृद्धवादिसूरिना शिष्यरत्न छे, स्कन्दिलसूरिजी वी० सं. ३७६-४१४ (विक्रम पू. ९४-५६) मां युगप्रधानहता। .. १. एवं सप्तनयाम्बुधेर्जिनमताद्वाह्यागमा येऽभवन् , स्थित्युत्पादविनाशवस्तुविरहात् तान् सत्यतायाः क्षिपन् । यो बौद्धा-वधिबुद्धतीर्थिकमतप्रादुर्भवद्विक्रमः, मल्लो मल्लमिवान्यवादमजयत् श्रीमल्लवादी विभुः॥ २. सलोमा मण्डूकः, चतुष्पात्त्वे सत्युत्प्लुत्य गमनात्, मृगवत्, अलोमा वा हरिणः, चतुष्पात्त्वे सत्युत्तुत्य गमनात् मण्डूकवत् इत्यादिवत् निर्मूलयुक्तेने साध्यसाधकत्वम्. (नयचक्र पृ. ५२ मा जुओ) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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