Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

Previous | Next

Page 18
________________ ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥' २०-१० ॥ जैन ग्रन्थोमां विक्रमनी साथे दिवाकरसूरिनो सम्बन्ध सारी रीते प्रसिद्ध छे । सिद्धसेनदिवाकरसूरिए क्षपणक व्याकरणनी खोपज्ञवृत्ति करी होय तेम पण 'मैत्रेयरक्षिततंत्रप्रदीप' मां आवता उल्लेखथी जणाय छे, 'अत एव नावमात्मानं मन्यते इति विग्रहपरत्वादनेन हस्खत्वं बाधित्वा अमागमे सति नावं मन्ये इति क्षपणकव्याकरणे' इति । तथा उज्वलदत्तविरचित-उणादिवृत्तिमां तो स्पष्ट शब्दोमां जणाव्यु छे 'क्षपणकवृत्तौ अत्र इति शब्द आद्यर्थे व्याख्यातः' इति, । जैनेन्द्रव्याकरणमां पण 'वेत्तेः सिद्धसेनस्य' आ प्रमाणे व्याकरणना विषय मां तेमनो मत टांकवामां आव्यो छे । प्रस्तुत नयचक्रमां पण 'अस्ति भवति विद्यति पद्यति वर्ततयः सन्निपातषष्ठाः सत्तार्थाः' तथा 'तथा चाचार्यसिद्धसेन आह-यत्र हि अर्थो वाचं व्यभिचरति नाभिधानं तत् । आ बधा व्याकरण-सम्बन्धी वाक्योथी दिवाकरसूरिए व्याकरणनी रचना करी हशे एम मालूम पडे छे अने ते व्याकरणनुं नाम क्षपणक व्याकरण हशे ! क्षपणकनी कृती होवाथी आ व्याकरणनी क्षपणकव्याकरणरूपे प्रसिद्धि थइ होय तो विक्रमना नवरत्नोमां क्षपणकनामथी सिद्धसेनदिवाकरसूरि ज आज सुधी समजाय छे एटले विक्रमना समसामयिकपणामां कशो अन्तराय आवतो नथी। ___न्यायावतार ग्रन्थना कर्ता तरीके सिद्धसेन दिवाकर सू० म० नी प्रसिद्धि छे । आ प्रसिद्धि न्यायावतार अने नयावतारने एक मानीने थई हशे! नयचक्रनी व्याख्यामां सम्मतिनी साथे 'नयावतार' ग्रन्थनुं नाम आवे छे, पण न्यायावतारनुं नाम आवतुं नथी । अथवा आ प्रसिद्धिनुं मूळ कारण न्यायावतारनी एक कारिकाने हरिभद्रसूरिमहाराजे 'महामतिना उक्तं' एम कहीने लीधी छे । ते पदनी टीकामां जिनेश्वरसूरिमहाराजे अतिशयप्रज्ञ सिद्धसेन सूरि महाराजना नामनो करेलो उल्लेख हशे ! परन्तु आ सिद्धसेनसूरिमहाराज सिद्धसेन दिवाकरसूरिमहाराज छे के बीजा कोई सिद्धसेनसू० म० छे तेनो सावधानीपूर्वक विचार करवो जोइए । आ नयचक्रशास्त्रना अन्तमा नयावतारनो नयशास्त्ररूपे उल्लेख करवामां आव्यो छे, नहि के न्यायावतारनो। न्यायावतारमा तो नयोनी सूचनामात्र जोवामां आवे छे, तेनो कशो ज विचार देखातो नथी। तेमां अधिकपणे प्रमाण- ज निरूपण करवामां आव्युं छे । एटले आ न्यायावतार दिवाकरमहाराजे रचेलं नयशास्त्र नथी । आना कर्ता बीजा कोई सिद्धसेन महामति हशे ! प्रख्यात दिवाकर शब्दनो प्रयोग छोडीने महामति शब्दनो उल्लेख बीजा सिद्धसेन सू. म. नी संभावना तरफ खेंची जाय छ । उमास्वाति महाराज. ___ आ आचार्यश्रीनो बनावेलो 'तत्त्वार्थसूत्र' नामनो ग्रन्थ श्वेतांबर अने दिगम्बर बन्ने जैन संप्रदायोने मान्य छ । नयचक्रकारे 'तत्त्वार्थसूत्र' तथा तेना खोपज्ञ 'भाष्य' ना वाक्यो प्रमाणरूपे उद्धृत कयों छे। आ विक्रम कोण छे आ बाबतमा इतिहासकारोमा अभिप्राय भेद प्रवत्त छ। २ आ आचार्यना व्याकरणविषे नाथुरामजीप्रेमजी आशंका करे छे पण व्याकरणना विषयमा आचार्यना मतनो उल्लेख त्यारेज थाय के एमर्नु कोइ स्वतंत्र-व्याकरण बनावेलुं होय | जेम 'पुंक्षु' ए अनुभूतिस्वरूपाचार्यना मतमां बने छे. आ रूपनी एमणे व्याकरणमां सिद्धि करी छे. माटे कहेवाय छ । दिवाकर सू० म० ना आसिवायना अन्य पण एमना व्याकरण-विषयक मतोनी नोंध आ ग्रंथमा छ । माटे क्षपणक व्याकरणना कर्ता आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकर सू० म० छ एमां शंका लाववा जेवू लागतुं नथी। ३ सम्मतिनी साथे ज नयावतारनुं नाम आवे छे, आथी सम्मति अने नयावतार एककर्तृक छ। ४-निशीथचूर्णि आदिमां आवता आ सिद्धसेन सू० म० होय । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 364