Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

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Page 19
________________ २ 'लौकिकसम उपचारप्रायो विस्तृतार्थो व्यवहारः ' आ वचन उपलभ्यमान भाष्यमा उपलब्ध थाय छे । श्वेतांबरो आ भाष्यना कर्ता उमाखातिम० ने माने छे । मल्लवादिसूरिमहाराजना समय सुधीमां तत्त्वार्थसूत्र ऊपर आ एक भाष्य ज हशे ! आ भाष्य सिवायनी तत्त्वार्थसूत्रनी प्राप्त थती टीकाओमां सहुथी प्राचीन टीका दिगम्बर देवनन्दिनी छे के जेओ पूज्यपादना नामथी ख्यात छ ने तेओ विक्रमनी पांचवी या छठी शताब्दिना मनाय छे तेमनी छे । आ टीकार्नु एक पण वाक्य मल्लवादिसूरिए लीधुं नथी। ___आ आचार्यश्रीए तत्त्वार्थमा ‘गुणपर्यायवद्रव्यम्' अर्थात् गुण अने पर्याय वाळु द्रव्य कहेवाय. गुण अने पर्याय बन्नेय वस्तुतः गुण छ । बन्नेमां भेद नथी, केमके भाष्यकारे ' भावान्तरं संज्ञान्तरश्च पर्यायः' एम कयुं छे माटे ज टीकाकारे क्रमभावी अने सहभावी भेदोने गुण कह्या छे अने भाष्यकारनो पण आज अभिप्राय होवाथी आगळ 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः' आ प्रमाणे केवल गुणर्नु ज लक्षण कयुं छे । गुणथी पर्याय भिन्न विवक्षित होत तो पर्यायन पण लक्षण जरूर कयु होत । आ ज वातनुं दिवाकरसूरिए स्फुटीकरण कयुं छे । वळी 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' उमास्वाति म० ना आ सूत्रनुं ज पोषण सम्मतिमां थयु छ । माटे उमाखाति म० दिवाकरसूरिथी पूर्ववर्ती छे, एटले उमाखातिम० नो समय विक्रमथी पूर्वनो छे तथा वाचक मुख्यजीए तेज अने वायुने त्रस कह्या छे, अर्थात् वायु अने तेजनो मात्र त्रस शब्दथी ज व्यवहार कर्यो छे । त्रसने कशुं विशेषण लगाव्यु नथी। पू० शिवशर्म सूरि म० जाणे ए सूत्रनुं विवरण करता न होय तेम वायु अने तेजने केवल त्रस न कहेतां तेने सिद्धान्तनो विरोध न आवे माटे सूक्ष्मत्रस कह्या छे, माटे उमाखाति म० एमनाथी पण पूर्वना छ । आ नयचक्रनी टीकामां शिवशर्मसूरिनी कर्मप्रकृतिनुं प्रमाण आवेलं छे । जेओ उमाखातिम० ने चोथी सदीना अने शिवशर्मसूरिने पांचमी सदीना कहे छे, तेओए पोतानी मान्यतानुं संशोधन करवानी जरूर छ। ___ आ आचार्यश्रीए ५०० प्रकरणोनी रचना करी छे । जैन साहित्यमा उपलब्ध थती जैन संस्कृत ग्रन्थोनी रचनाओमां सौथी प्रथम आटला संस्कृत ग्रन्थनी रचना आमनी ज देखाय छ । आ सूरीश्वरजी म० ना तत्त्वार्थने पू० याकिनीमहत्तरासूनु हरिभद्रसूरिजी तो आगेम कहे छे। जैन परम्परामां चतुर्दश-पूर्वधर के दशपूर्वधर जे ग्रन्थोनी रचना करे छे ते आगम कहेवाय छे। आथी उमाखातिम० दशपूर्वधर हता दशपूर्वधरोमां अपश्चिमश्रुतधर वज्रखामी म० थया छे जेओ छेल्ला दशपूर्वधर थया छे एमनी सत्ता विक्रमनी बीजी सदी मां मनाय छे । आमनाथी उमास्वातिम० पूर्वना होवा जोइए। वि० सं० १५३ मा उत्तर मथुरामां श्रमण संघने मेळवी पोताना गुरु भाई आ० मधुमित्रना शिष्य आ० गन्धहस्तीए तत्त्वार्थ ऊपर महाभाष्य रच्यु छ । 'पूर्वस्थविरोत्तंसोमाखातिविरचिततत्त्वार्थोपरि अशीतिसहस्रश्लोकप्रमाण महाभाष्यं रचितम् , यदुक्तं तद्रचिताचाराङ्गविवरणान्ते यथा-थेरस्स महुमित्तस्स सेहेहिं तिपुन्वनाण जुत्तेहिं । मुनिगणविवंदिएहिं ववगयरागाईदोसेहिं ॥१॥ बंभदीवियसाहामउडेहिं गंधहत्थिविबुहेहिं । १. 'तत्र के गुणा इति' भाष्ये, तस्य टीकायां 'गुणग्रहणाच पर्याया गृहीता एवेत्यतो न भेदेन प्रश्नः, प्राक्च प्रतिपादितमेव गुणाः पर्याया इति चैकमिति' (पृ० ४३५)। २.'तेजोवायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः' तत्त्वार्थ० २-१४ । ३. आ० टी० सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः इत्यागमो विरुद्धयते पृ. ७२।१। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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