Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4 Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri Publisher: Chandulal Jamnadas ShahPage 12
________________ (अर छे ) ते बधा परस्परनिरपेक्ष थईने अजैनशास्त्रनी पेठे विचार करे तो असत्यार्थने प्रकाश करवाथी असल्य छ । अने ते बधा परस्पर मळीने अविरोधपणे विचार करे तो ते जैनशासन होवाथी सत्य छ । केमके वस्तु सामान्यविशेषाद्यनन्तधर्मात्मक छ। ते ज रूपे बधा नयोए मळीने सापेक्षपणे विचार करवो जोइए सापेक्ष निरपेक्ष विचार ज ग्रन्थकारे आ ग्रंथमां दर्शाव्यो छ । आ ग्रन्थमां कोई पण स्थळे नय अने दुर्नयना भेदनी विचारणा करी नथी, फक्त नयोनी विचारणा करी छ । जो के संमतितर्कमां सिद्धसेन दिवाकरसूरि म. ना ग्रन्थमा आ भेद जोवामां आवे छे । छतां मल्लबादि सू. म. आ भेदोने केम स्थान नथी आप्यु ! आ एक महत्त्वनो प्रश्न छ । आ बार अर विधि अने नियमना भङ्ग छे । प्रथम चार अर विधि भङ्ग छ । आ एक मार्ग (नेमि ) छे । आगळना चार अर उभय भङ्ग छे आ द्वितीय मार्ग छे । शेष चार अर नियम भङ्ग छे, आ तृतीयमार्ग छ । आ मार्ग अकृतकत्व-कृतकाकृतकत्व-कृतकत्वरूप हेतुओ द्वारा नित्यत्व-नित्यानित्यत्व-अनित्यत्वनी स्थापना करे छे । आ बार नय ज्यारे एकमत थईने परस्पर-अपेक्षा राखीने वर्तन करे छे-'स्यान्नित्यः, स्यान्नित्यानित्यः, स्यादनित्यः शब्दः, एवी प्रतिज्ञा करे छे, त्यारे परिपूर्ण अर्थना प्रकाश करावनार होवाथी सत्यखरूपने बतावनार थाय छे एम नयचक्रना तुम्बमां विवेचन करवामां आव्यु छे । आ ज नयचक्रशास्त्रनुं मुख्य प्रतिपाद्य छ । ग्रन्थकर्ता अने तेमनी महत्ता:-आ ग्रन्थना रचयिता वादिचूडामणि मलवादिक्षमाश्रमणजी छे । जैनन्यायशास्त्रमा आ आचार्यश्री ख्यातनामा छे । नयचक्र टीकाकार लखे छे के-"जयति नयचक्रनिर्जितनि:शेषविपक्षचक्रविक्रान्तः । श्रीमल्लवादिसरिर्जिनवचननभस्तलविवस्वान् ॥" अर्थात् नयोना चक्ररूप सुदर्शनचक्रवडे जेमणे सघळाए स्याद्वादना विरोधियोने पराजय आप्यो छे, ते जिनवचनरूपी आकाशमा सूर्य जेवा मल्लवादिसूरि म० जयवंता छ । आ श्लोकमांथी श्रीमल्लवादिसूरि म० नयचक्रना कर्ता छे, वादिओने जीतनार छे अने जिनवचनना प्रकाशक छ, अर्थात् ते समयमां वर्तमान जिनागमोना रहस्यना सम्यक् वेत्ता अने प्रकाशयिता हता। आ आचार्य पोतानी तर्ककुशल बुद्धिद्वाराए जैन जगतमां अति विख्यात छ । पोताना मतनी सिद्धिमाटे युक्तिओना एक अतिसुन्दर दुर्भेद्य व्यूहनी उपस्थिति करी प्रखरवादिवृन्दोने वादयुद्धमा जीती ले छे । आ वात एमना सर्वश्रेष्ठ महत्त्वपूर्ण आ ग्रन्थथी सारी रीते जाणी शकाय छ । एमनी जिह्वा जेम परपक्षनुं निराकरण करवामां कुशल हती, तेम एमनी लेखनी पण स्वपक्षना मण्डनमा द्रुतगतिथी चाले छे। रचनानो आधार:-आ आचार्यश्रीना जन्मस्थान आदिनुं इतिवृत्त प्रभावकचरित्र आदि अनेक प्रन्थोमा उल्लिखित होवाथी वाचकोने त्यांथी ज जाणी लेवा विनंति करीये छीए । तेओश्रीए प्रस्तुत ग्रन्थनी रचना कोना आधारे क्यां अने क्यारे करी ते विषयमा सामग्रीनो अभाव होवाथी कशुं ज लखी शकता नथी । छतां एनो मूळ आधार 'सप्तनयशतार' आदि ग्रन्थो हशे एम लागे छे । ते ग्रन्थो मूळकारना समयमा हता एम जाणी शकाय छे, परंतु मूळकारे एनो आधार आज छे एम स्पष्टपणे सूचव्यु नथी एट्ले निश्चयथी ते ज आधार छे एम केवी रीते जाणी शकाय ? आ नयचक्र 'पूर्वमहोदधिसमुत्थितनयप्राभृततरङ्गागमप्रभ्रष्टश्लिष्टार्थकणिकामात्र' छे एम कहीने प्रमाण अने आगमपरम्परा मूलक आ नयचक्र छे एटलं ज मूळकारे कथु छे। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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