Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

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Page 10
________________ निर्देश आवतो होवा छतां तेओश्री आ मतांतरने स्पा पण नथी। तेमणे नथी तो कयें सिद्धसेनदिवाकरसरि महाराजना मतनुं खण्डन के नथी कयें जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणना मतनुं खंडन केवलज्ञान अने केवलदर्शन विषे मल्लवादिसूरिमहाराजनो मत जुदो पडे छे ए स्पष्टता टीकाकारे पण करी नथी । हरिभद्रसूरिजी महाराजना समयमां आ मतान्तर प्रचलित होवा छतां मल्लवादि सूरिजी महाराजना नामे एनी प्रसिद्धि न हती, अतः आ विषय विद्वानो माटे शोधखोळनो बनी रहे छ । - ग्रन्थकारना नामे चालता प्रवादो:-मल्लवादिसूरिमहाराज पोते हेत्वाभासमां शुं माने छे ते वातनो उल्लेख पण तेमणे आ ग्रन्थमां को नथी । आ ग्रन्थमां तेओश्रीए वस्तु तरीके नयवाद अने स्याद्वादने स्वीकारी मुख्यत्वे तेनी ज विचारणा करी छे । आ ग्रन्थमां जैनदर्शन केटला पदार्थ माने छे, केटला प्रकारना हेतुओ माने छे, केटला हेत्वाभास माने छे, इत्यादि कशीज चर्चा विशेषकरीने आवती नथी अने ज्यां ज्यां प्रमाणो के हेतुओनी चर्चा करवामां आवी छे, त्यां त्यां फक्त अमुक नयवादने आश्रयीने ज करवामां आवी छे । ए उपरान्त मल्लवोदिसूरिमहाराजना नामे अमुक नयो द्रव्यार्थिक छे अने अमुक नयो पर्यायार्थिक छे ए भेद पाडवामां आव्या छे । आ बधा गुंचवाडा मल्लवादिसूरिमहाराजनो कोई खतंत्र ग्रन्थ होय एम अनुमान करवा प्रेरे छे । अथवा सम्मतितर्कनी तेमणे पोते रचेली व्याख्यामां पण कदाच होय ! तो ज आ बधा अभिप्रायो संगत बने ! आ नयचक्रमां तो द्रव्यार्थिक छ अरोनो व्यवहार, सङ्ग्रह अने नैगममा पर्यायार्थिक छ अरोनो ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ अने एवम्भूतमा समावेश कर्यो छे । नामनी यथार्थता तथा ग्रन्थनी रचनापद्धतिः-नयवादनो छेडो आवी शकतो नथी, एनी न आदि छे न अन्त । एक चक्रनी जेम ते सदा फरतो रही खण्डन अने मण्डन कर्याज करतो होवाथी ग्रन्थकारमहर्षिए एनी रचना चक्राकारे करी एने नयचक्र एव॒ यथार्थ नाम अर्पण कर्यु छ । आ नयचक्ररत्नमां बार अर छ । प्रत्येक बे अर वच्चे एक अन्तर एवा बार अन्तर छ । प्रत्येक चार अर पर एक नेमि [ मार्ग ] एम त्रण नेमि छे । अने छेल्ले सघळा अरोने पोतानामा समावनारं-खरेखर तो सघळा अरोनुं अने आगळ वधीने कहिए तो समग्र चक्रतुं आधार स्थान एक तुम्ब छ । प्रत्येक अर एक खतंत्र नयवाद छे । आ चक्रना छ अर द्रव्यार्थिकदृष्टिविशेषना छे अने बीजा छ अर पर्यायार्थिकदृष्टिविशेषना । प्रथम एक नयनो आधार लईने सामान्य, विशेष अने सामान्यविशेषोभयवादिओना वादो लेवामां आव्या छे । ते पछी तेनु खण्डन के जे दर्शाववा अन्तरनी रचना करवामां आवी छे-करी अन्य नयमत शरू करवामां आवे छे । ए अन्यनयमत प्रथम बोजा वादिओना मतमतांतरोनुं अन्तरमा खण्डन करी पछी पोताना मतविशेषतुं निरूपण करे छे । ते ते अरना अंते ग्रन्थकारे ते ते नय (अर)नो सङ्ग्रहादि सात नयोमां कया नयमा समावेश थाय छे, ते बतावीने ते नयने सम्मत शब्द, वाक्य तथा तदर्थने बतावी ते ते नयनो मूळ आधार जैन आगम छे एम निरूपण कयु छ । एटले बधा नयो आगमनां एक एक वाक्यना विषयने लईने पोताना अभिप्राय मुजब एकान्त वर्णन करे छे एम दर्शाव्यु छ । द्रव्यार्थिक छ नयोमां द्रव्यशब्द अने पर्यायशब्दनो जुदो अर्थ दर्शाववामां आव्यो छे, १. 'असिद्धः सिद्धसेनस्य विरुद्धो मल्ल्वादिनः'। २. द्रव्यगुणपर्यायरास, पृ. ७३ नी खोपज्ञटीका। ३. १. व्यवहार नय, २. ३. ४ सङ्ग्रहनय ५-६ नैगम ७ ऋजुसूत्रनय ८. ९ शब्दनय १० समभिरूढनय ११-१२ एवम्भूतनयमां आवे छे। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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