Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4 Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri Publisher: Chandulal Jamnadas ShahPage 15
________________ भगवान दिवाकर विद्याधरवंशीय स्कन्दिलाचार्यना ज प्रशिष्य छे एना माटे प्रभावक चरितकार वृद्धवादिसूरिना प्रबन्धमा १७६ थी १७८ श्लोकमा उल्लेख करे छे के वृद्धवादिसूरि विद्याधरगच्छना हता | आथी एक वस्तु सिद्ध थई जाय छे के आर्य जीतधर स्कन्दिलाचार्य के जेओ श्रीवृद्धवादिसूरिना गुरु छे विद्याधर गच्छ (वंश) ना छे एटले भगवान दिवाकरसूरि विद्याधरगच्छना स्कन्दिलाचार्यना ज प्रशिष्य छे नहीं के बीजा स्कन्दिलाचार्यना । आनी सामे एक प्रश्न करी शकाय छे के श्रीवृद्धवादिसूरिना गुरु तरीके आर्य जीतधर स्कन्दिलाचार्यने ज मानवा माटे कोइ प्रमाण छे ? एना उत्तरमा एक प्रबल वस्तु ए छे के नन्दिसूत्रना पाठक्रममां आर्य जीतधर स्कन्दिलाचार्यना उल्लेख पछी लगभग पांच-छ आचार्योना उल्लेख पछी काश्यपगगोत्रीय स्कन्दिलाचार्यनो उल्लेख कर्यो छे जे दिवाकरना संभवित समयनो अतिक्रम करी जाय छे आथी पण आर्य जीतधर स्कन्दिलाचार्यने ज विद्याधर गच्छीय मानवा ए अधिक न्याय्य छ । बीजी पण एक बात ए छे के काश्यपगोत्रीय स्कन्दिलाचार्य अनुयोगधर छे एमणे आगमनी चोथी वाचना आपी छे ए निर्विवाद छ । आ वाचना दशपूर्वधर भगवान वज्रखामीथी पश्चाद्भावी छे अने भगवान वज्रखामी भगवान दिवाकरसूरिना उत्तरवर्ती छे एमां अमारी जाण प्रमाणे विवाद छ ज नहि । आथी सिद्ध थयुं के भगवान वज्रखामीना उत्तरवर्ती अनुयोगधर स्कन्दिलाचार्य श्रीवृद्धवादिसूरिना गुरु सम्भवी शके ज नहीं एटले एमना गुरु तरीके जे स्कन्दिलाचार्यनो उल्लेख कर्यो छे ए कौशिकगोत्रीय आर्यजीतधर स्कन्दिलाचार्य ज छे । आ विचारणा असंदिग्धपणे आपणने जणावी जाय छे के भगवान दिवाकर सूरिम संवत् प्रवर्तक विक्रमादित्यना समकालीन हता। 'श्रीनागेन्द्रकुले श्रीसिद्धसेनदिवाकरगच्छे अस्माच्छुप्ताभ्यां कारिता संवत् १०९६' जेसलमेरना 'चन्द्रप्रभ' भगवानना जिनमंदिरमा धातुनी पश्चतीर्थीप्रतिमाना आ लेखथी सिद्धसेनदिवाकरसूरिना नामथी गच्छ चालतो हतो अने आ गच्छ नागेन्द्र (नाइल ) कुलमां थयो छे आटलं जाणवा मळे छ । आ प्रतिमालेखमां विद्याधरवंश के विद्याधर कुल के विद्याधर गच्छ आवा नामो न होय ए खाभाविक छ कारण के दिवाकर सू. म. ना नामनो एक गच्छ ज प्रवर्तमान थई गयो हतो, छतां प्रसिद्ध सिद्धसेनदिवाकर सू. म. नागेन्द्र कुलमां थया होय तेम संम्भवतु नथी केम के आ० सुस्थित सु. म. थी कोडीय (कोटी) गण नीकळ्यो हतो आमनी परम्परामां वज्रस्वामीना शिष्य वज्रसेनना शिष्य आर्य नागिलथी नाइलशाखा नीकळी छे । प्रभावकचरित्रकार नागेन्द्रगच्छ नागेन्द्रशिष्यथी नीकळ्यो छे एम जणावे छे नन्दिस्थविरावलीमा आर्य स्कन्दिलने ब्रह्मदीपिकाशाखाना सिंहाचार्यना शिष्य कह्या छे आ शाखा आर्यसमितसरिथी शरूं थई छ । एमनो समय वी० नि० सं ५८४ छे जेओ वज्रस्वामीना मातुल थाय छे, प्रभावकचरित्रकार विद्याधरआम्नायना सूरि म० आटलं ज लखीने चुप बेसी जाय छे । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 364