Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 30
________________ दिव्य जीवन १५ 'द्वारिकानगरीकी साज-सज्जा कितनो नयनाभिराम है - जैसे कोई मुग्धा नायिका बनाव- सिंगार कर अपना रूप देख रही हो । नेमिकुमार रथमें बैठकर विवाहके लिये राजमहलके समीप पहुंच गये । सर्वत्र तोरण और पुष्पमालाएं मनको मोहित करने लगी । किन्तु यह क्या सुन रहा हूं ? यह हृदयको कंपाने वाली पशुओंकी कातर आवाज कहांसे आ रही है ? - कुमारने सारथिसे पूछा । सारथिने कहा : कुमार, ये विविध पशु एकत्रित किये गये हैं । आपके श्वसुर उग्रसेनने आपके विवाह के उपलक्ष्य में यादवोंको अनेक प्रकारके मांसके व्यंजन खिलानेके लिये इन पशुओंको हर्षपूर्वक एकत्रित किया है । ―― It 'नेमिकुमारने कहा : इस संसारको धिक्कार है । यह समस्त पापोंका सागर है । हे सारथि, जहां ये पशु हैं, वहां रथको ले जाओ। इनको फिरसे स्वच्छन्द घूमने दो । " 16 'उसी समय सारथिने रथ मोड़ दिया । नेमिकुमारने इन पशुओंको देखा। उनमें से किसीके गलेमें और किसीके पांवमें बन्धन थे। कितने ही पिंजरे में छटपटा रहे थे । नेमिकुमार विश्वप्रिय एवं सहृदय थे । उनको देखकर प्रत्येक पशु मानो अपनी अपनी भाषामें कहने लगा मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ! " कुमारने सबको छोड़ दिया । पशुगण वनमें पुलकित होकर भाग गये । नेमिकुमार संसारजालको तोड़कर अमर सुखको प्राप्त करनेके लिये चले गये । " छगनके सामने दिनरात महापुरुषोंके दिव्य चरित्र आते और वह गहरी चिन्तामें डूब जाता । वह सोचता : मैं कब इस मायावी संसारके जालसे छुटकारा पाऊंगा | उसको जंबुकुमारका दृष्टान्त स्मरण हो आया । जंबुकुमार ! तुमको धन्य है । गणधर श्री सुधर्मास्वामीकी अमर वाणीने तुम्हारे मानसatest प्रकाशित किया । अहा, तुमने अमर सुखकी प्राप्तिके लिये भरयौवनमें क्षणिक संसारसुखको त्याग दिया । जंबुकुमारकी कथा २५०० वर्षों पहिलेकी है, परन्तु छगनको यह लगा कि यह घटना आज ही घटित हुई है । उसका रोम रोम पुलकित हो उठा। इस प्रकार दिव्य गुरुदेव आत्मारामजीकी वाणीने छगनके अन्तरलोकको आलोकित कर दिया । उसका मन प्रकाशसे जगमगा उठा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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