Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 53
________________ दिव्य जीवन सागर है। प्रेमपुजारी भगवानका सच्चा भक्त होता है, क्योंकि उसके मनमें सबके प्रति मैत्रीभाव रहता है।" इस सुन्दर व्याख्यासे सभाके अध्यक्ष श्री रेगे अत्यन्त ही प्रसन्न हुए। उन्होंने हर्षित होकर ये उद्गार प्रकट किये : ." गुरुदेवकी वाणीमें मधुरता है। उनके हृदयमें प्राणिमात्रके लिये कल्याणकी भावना है। आत्मकल्याणके लिए मानवधर्म अर्थात् मनुष्यताका महत्त्व गुरुदेवने जिस सुन्दर शैलीमें बताया है उससे मैं अत्यन्त ही मुग्ध हुआ। मानवसेवा द्वारा पीड़ित भाई-बहिनोंके दुख-दर्द दूर करनेके लिए हमें सतत प्रयत्नशील रहना चाहिये ।” बम्बईके आजाद मैदानमें आरोग्यमंत्री श्री शान्तिलाल शाहकी अध्यक्षतामें महावीर जयन्ती मनाई गई। विशाल जनमेदनी गुरुदेवका भाषण सुनकर पुलकित हो गई। गुरुदेवने भगवान् महावीरका संदेश जनता-जनार्दनको सुनाया: "समस्त प्राणियोंको अपना जीवन प्रिय है, वे सुख चाहते है, दुःखसे घृणा करते हैं। वे दीर्घायु होना चाहते हैं। अतः सभीके जीवनकी रक्षा होनी चाहिये। भगवान महावीरने कहा था : 'यदि विश्वका समस्त खजाना आपको मिल जाय, फिर भी आपको संतोष नहीं होगा। न समस्त धनवैभव आपको कालके पंजेसे बचा लेगा।' ___भाग्यशालियों! लक्ष्मी चंचल है। समाजसेवामें धन खर्च करो। यह धन, ये महल, और यह चकाचौंध नाशवान है, अतः दूसरोंको सुखी करनेका प्रयास करो। जैसे वृक्षका पत्ता पतझड़में पीला होकर गिर जाता है, वैसे ही मनुष्योंका जीवन भी आयुके समाप्त हो जाने पर सहसा नष्ट हो जाता है। इसलिए गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न करो। भगवान महावीरने एकताका संदेश दिया था। उनका दिव्य संदेश आजके खंडित-बिखरे हुए और दुखी विश्वके लिए अमृतांजन है।" __गुरुदेवने भगवान महावीरकी करुणाका उल्लेख करते हुए कहा : "भगवान महावीरकी करुणा अनन्त सागरके समान थी। जगत्सुखके लिए उन्होंने भीषण कष्ट सहे। अपनी साधनासे उन्होंने जो ज्ञानामृत प्राप्त किया, वह विश्वको पिलाया। विश्वके समस्त प्राणी उनकी करुणाके पात्र हैं। विषेला चंडकौशिक सर्प भी उनकी करुणाका पात्र बना। अतः उसका उद्धार हुआ। गुरुदेवका वालकेश्वरमें दिया गया भाषण अत्यन्त ही प्रभावशाली तथा दर्दभरा था। उनकी वेदना आज भी मुखरित है। उस वेदनाका स्पंदन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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