Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 78
________________ दिव्य जीवन गर्वमें फल गये थे उन्हें विनम्रताकी हरी दूब पर उतार दिया। गुरुदेवने समानताका गीत सुनाकर, प्रेमका शरबत पिलाकर, मैत्रीकी मिठाई खिलाकर और सेवाका शीतल जल पिलाकर जनमनको तृप्त किया। स्वार्थके अंधेरेमें लड़खड़ानेवाले कितने ही मनुष्योंको मानवताकी टार्चलाइट दिखाकर गुरुदेवने मार्ग दिखाया, मायाकी चकाचौंधमें चकित जनोंको अमर सुखकी राह बताई । गुरुदेवका प्रेम सबको समान रूपसे मिला । पंजाबी बन्धुओंने उनको अपना समझा, राजस्थानी भाइयोंने उनको अपना कृपालु माना, उत्तर प्रदेशकी जनताने उन्हें अपना परम सखा समझा और महाराष्ट्र तथा अन्य प्रदेशोंके भाईबहनोंने उनको अपना उपकारी कहा। परन्तु वास्तविकता तो यह है कि गुरुदेवने अपने प्रेमसे सबको अपनी ओर आकर्षित किया, सबको अपने स्नेह-जलसे भिगो दिया ? उनके स्नेहका गुलाल जनताकी आंखोंमें रमा हुआ है, मनसरोवरमें वह गुलाल धुल गया है। उषाकी लालिमामें वह गुलाल दिखाई देता है, फूलोंके गुलाबी रंगमें वही रंग है, शिशुके मुख पर वही लालिमा मुस्कानके रूपमें क्रीडा कर रही है। मेरे नेत्रोंमें वह गुलाल छा गया है, रोम रोममें पुलकके रूप में वह लिपटा हुआ है। उनका यह गुलाल मुझे सर्वत्र छिटका हुआ दिखाई देता है। लाली मेरे लालको जित देखो तित लाल । लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल। चन्द्र आकाशसे अपनी चांदनी सबको देता है। सरोवरके उरमें चन्द्रबिम्ब प्रतिबिम्बित होती है। सरोवरको ऐसा आभास होता है कि चन्द्र मेरा ही है। सरिताको ऐसा लगता है कि चन्द्र उसका ही है, और किसीका नहीं। परन्तु चन्द्र तो सबको अपने प्यारकी चांदनीसे स्नान कराता है। यही बात गुरुदेवके लिये कही जा सकती है। पुष्प जीवनभर सुगन्ध बिखेरता रहा। उसने व्यक्तिमें सद्भावोंकी सुगन्ध बिखेरी, समाजको सेवाकी सुगन्ध प्रदान की, देशको प्रेमकी सुगन्ध दी। वह सुगन्ध उस दिन अनन्त, सुगन्धमें समा गई। दीपज्योति शाश्वत अमर ज्योतिमें अन्तर्लीन हो गई। अब वह ज्योति और भी दिव्य बनकर जनमनमें जगमगा रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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