Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 86
________________ दिव्य जीवन ७१ ज्ञान दीपक है, प्रेम उसका प्रकाश है। ज्ञान और प्रेमयुक्त जीवन में जो ज्योति जलती है उसकी चमक सरलता है । धर्ममें क्लेश, राग, द्वेषका कोई स्थान नहीं । धर्म समभाव और प्राणिमात्रके लिए मैत्रीभाव सिखाता है । भगवान् महावीरने अहिंसा और त्यागकी बहुमूल्य भेंट विश्वको दी है। जिसके पास वे अमूल्य रत्न हैं वह धनवान है । इन रत्नोंसे वंचित गरीब है । मानवधर्मका अर्थ है - सबके प्रति प्रेमभावना । प्रेममें करुणाका वास है । जिसके हृदय में करुणा होती है वही प्रेमको पहिचानता है । भगवान् प्रेम रूप है, क्योंकि वह करुणासागर है । प्रेमपुजारी भगवानका सच्चा भक्त होता है, क्योंकि उसके मनमें सबके प्रति मैत्रीभाव रहता है । ० भगवान महावीरने एकताका संदेश दिया था । उनका दिव्य संदेश आजके खंडित, बिखरे हुए और दुःखी विश्वके लिए अमृतांजन है । ० हमें शोषणहीन समाजकी रचना करनी है, जिसमें कोई भूखा-प्यासा नहीं रहने पाये । तुम्हारी लक्ष्मीमें उनका भी भाग है । Jain Education International ०. आज तो वरविक्रयका रोग लगा हुआ है । यह रोग इतना चेपी है कि समाज इस भयंकर टी. बी. के रोगके कारण मृतप्रायः बन रहा है । जहां देखो वहां लड़कोंका नीलाम हो रहा है । लड़कीवालोंसे बड़ी बड़ी कमें, तिलक-बीटीके रूपमें मांगी जाती हैं, सोना या सोने के जेवर मांगे जाते हैं; घड़ी, रेडियो, सोफासेट, स्कूटर या अन्य फर्नीचरकी मांग तो मामूली बात है । विदेश जाने और पढ़ाईका खर्च तक मांगा जाता है । इस प्रकार पराये और बिना मेहनतके धन पर गुलछर्रे उडाये जाते हैं । युवकोंके लिये तो यह बेहद शर्मकी बात है । ० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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